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________________ १६. व्यवहार नय ६५१ २. उपचार के भेद व लक्षण ८. स्वजाति पर्याय में स्वजाति गुण का आरोपण रूप असत व्यवहार या उपचार ऐसा जानो जैसे-देह के वर्ण विशेष को देखकर 'यह उत्तम रूप वाला है' ऐसा कहना । यहां वर्ण या रूप गुण की एक पर्याय विशेष मे स्वजाति रूप गुण की एक पर्याय विशेष मे स्वजाति रूप गुण का उपचार किया गया है । तथा इसी प्रकार अन्यत्र भी समझना जैसे कि ६. व. न च । ११३ " मनोवचन काय इन्द्रियाण्यानपानप्राणा आयुष्क च यज्जीवे । तदसद्भा तो भणति हु व्यवहारो लोक मध्ये | ११३ । " अर्थः-- मन, वचन, काय, पांच इन्द्रिय, श्वासोच्छवास व आयु इन दस प्रार्णो से जो जीता है वह जीव है' ऐसा अस व्यवहार नय से लोक में कहा जाता है । यहा पुद्रगल द्रव्यात्मक पर्यायों में विजाति जीव द्रव्य की जीवत्व पर्याय का आरोपण किया गया है । ७. आ. प. । १५ । पृ. १०८ " असद्भूत व्यवहारेण कर्म नो कर्मणोरपि चेतन स्वभाव । जीवस्याप्य सद्भ ूत व्यवहारेण मूर्त स्वभाव |... असद्भूत व्यवहारे णोपचरित स्वभाव. ।" अथ :- असद्भूत व्यवहार नय से कर्म व नो कर्म भी चेतन स्वभावी है, और जीव भी अचेतन व मूर्त स्वभाव वाला है । इसी प्रकार असद्भूत व्यवहार नय से उपचरित स्वभाव है यहा पुद्रगल द्रव्य में विजाति चेतन गुण का और चेतन द्रव्य में विजाति अचेतन वा मूर्त गुण का आरोप किया है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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