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२. उपचार के भेद
१६. व्यवहार नय
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व लक्षण
पर ज्ञात को हो, जीव ज्ञात व अजीव ज्ञात कह देनायथा घट ज्ञान, पुत्र ज्ञान इत्यादि । यहा चेतन ज्ञान मे चेतन व अचेतन रूप स्वजाति व विजाति ज्ञेयों का उपचार किया गया है, ४. स्वजाति द्रव्य मे स्वजाति विभाव पर्याय का आरोपण रूप असद्भत व्यवहार या उपचार ऐसा जानो जैसे-परमाणु यद्यपि एक प्रदेशी है परन्तु बहु प्रदेशी स्कन्ध मे बन्धने की शक्ति रखने के कारण इसे बहु प्रदेशी कहा जाता है । यहाँ पुद्रगल द्रव्य रूप परमाणु मे स्वजाति पुद्रगल पर्याय रूप स्कन्ध का उपचार किया गया है ।
५. स्वजाति गुण मे स्वजाति द्रव्य के आरोपण रूप असद्भात
व्यवहार या उपचार ऐसा जानो-जैसे मूर्त गुण के कारण द्रव्य को ही मूर्त कहना । यहा पुद्रगल के मूर्त गुण मे स्वजाति पुद्रगल द्रव्य का उपचार किया है ।
६. स्वजाति गुण मे स्वजाति पर्याय का आरोपण रूप असद्भात
व्यवहार या उपचार ऐसा जानो जैसे-ज्ञान भी एक पर्याय है क्योकि यह परिणमन करने के द्वारा ही ग्रहण करने में आता है । अर्थात मति ज्ञान को ज्ञान कहना' । यहा ज्ञान गुण मे स्वजाति ज्ञान पर्याय का उपचार किया गया है।
७. स्वजाति विभाव पर्याय मे स्वजाति द्रव्य का आरोपण रूप
असद्भ त-व्यवहार या उपचार ऐसा जानो जैसे-स्थूल स्कन्ध को देखकर 'यही पुद्गल द्रव्य है' ऐसा लोक मे माना जाता है। यहा स्कन्ध रूप पुद्रगल पर्याय में स्वजाति पर्याय का उपचार किया गया है ।