SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 675
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६. व्यवहार नय ६४६ २. उपचार के भेद व लक्षण - मे स्वजाति पुगद्रल पर्याय रूप स्कन्ध का उपचार किया गया है । ६. स्वाजाति गुण मैं स्वजाति पर्याय का आरोपण रूप असद्भूत व्यवहार या उपचार ऐसा जानो जैसे - ज्ञान भी एक पर्याय है क्योंकि यह परिणमन करने के द्वारा ही ग्रहण करने मे आता है । पर्याय मतिज्ञान को ज्ञान कहना । यहां ज्ञान गुण मे स्वजाति ज्ञान पर्याय का उपचार किया गया है । ७. स्वजाति विभाव पर्याय मे स्वजाति द्रव्यका पर्याय का आरोपण रूप असन व्यवहार या उपचार इस प्रकार जानो जैसे-दर्पण के प्रतिबिवं को देखकर यह प्रतिबिम्ब दर्पण की ही पर्याय है ऐसा कहना । यहा स्वजाति द्रव्य की पुद्रगलात्मक पर्याय मे स्वजाति प्रतिबिम्ब रूप पुद्रगलात्मक पर्याय का उपचार किया है । २. विजाति गुण मे विजाति गुण का आरोपण रूप असद्भत व्यवहार या उपचार इस प्रकार जानो जैसे - मूर्तिमान इन्द्रियों के निमित्त से उत्पन्न होने के कारण मतिज्ञान को मूर्त कहना । तथा ऐसा तर्क उपस्थित करना कि यदि यह ज्ञान मूर्त नही है तो मूर्त द्रव्यो से बाधित क्यों हो जाता है । यहां अमूर्तीक गुण मे विजातीय मूर्तीक गुण का उपचार किया गया है । ३. स्वजाति विजाति द्रव्य मे स्वजाति विजाति गुण का आरोपण-रूप असद्भूत व्यवहार या उपचार इस प्रकार जानों, जैसे जीव व अजीव को ज्ञेय रूप से विषय करने
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy