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१८. निश्चय नय ६४१ १२. निश्चय नय सम्बन्धी
शंका समाधान की भी निवृत्ति हो जाती है। जिस प्रकार निश्चय से व्यवहार विकल्पों की भी निवृत्ति होती है उसी प्रकार शुद्ध निश्चय के विषय भूत स्वभाव की भावना से निश्चय के एकत्व या अभेद द्रव्य के विकल्प की भी निवृत्ति हो जाती है । इस प्रकर जो यह जीव का शुद्ध स्वभाव है सो ही सर्व नय के पक्षो से अतीत है । अर्थात शुद्ध निश्चय नय ऐसा वताता है इसलिये वह उपादेय है।
६६. ध. । पू । ६६३. कर्म कलंकरहित आत्म स्वभाव को
जान कर उस शुद्धातत्मा की सिद्धि होना इस का फल है, इसलिये यह नय उपाय है ।
७ मो. मा.प्र. । ७ । १७ । ३ । ३६६ । १२. निश्चय नय तिन
(व्यवहारिक भेदो) ही को यथावत निरूपण करै है, काहूकौ काहू विषै न मिलावै है । ऐसे ही श्रद्धान तै सम्ययक्त्व हो है, तातै यांका श्रद्धान करना।
८. नय. चक्र . गद्य। पृ. ३२. निश्चय नय परमार्थ प्रतिपादक
होने के कारण भूतार्थ है । यहा ही आत्मा को विश्रा त अन्तर्दृष्टि प्राप्त होती है । अत. उपादेय है ।