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१८ निश्चय नय
उत्तर -- आत्मा रागादिक अपने भावो !" को ही करता है द्रव्य कर्मो को नही । रागादिक अपने भावों को ही जव वन्ध का कारण जानता है तव रागादिक के विनाशार्थ निज शुद्ध आत्मा को भाता है, जिससे रागादि का विनाश होता है । रागादि के विनाश से आत्मा शुद्ध होता है । इसलिये इसे उपादेय कहा जाता है । अर्थात रागादिक को जब तक अपना अपराध न समझे तव तक उन्हे कैसे त्यागे ?
१२. निश्चय नय सम्वन्धी
शका समाधान
२. स सा. वु ४९. श ुद्ध
निश्चय नय से जो शुद्धात्मा ( या सामान्य आत्मा ) जनने मे आया है वह ही उपादेय है ऐसा मानकर समाधि मे स्थित हो कर सर्व प्रकार से उसका ध्यान करना योग्य है । अर्थात इस अभिप्राय से वह उपादेय है ।
३. स० सा० । आ० । १८. क० १२२ यहा ऐसा तात्पर्थ जानना कि निश्चय या शुद्ध नय हेय नही है । क्योकि उसके ग्रहण करने से तो बन्ध नही होता है परन्तु उसका त्याग करने से बन्द अवश्य होता है ।,
४ पा० प्र० भू । ७१ देह को देख कर जीव को जन्म मरण का भय नही करना चाहिये । 'जो यह अजर व अमर परब्रह्म अत्तर मे प्रकाशमान है । उसे ही तू आत्मा मान' । इस प्रकार दर्शाकर यह नय जीव को भयमुक्त करता है इसलिये उपादेय है ।
५.नय. चक्र गद्य पृ ६९-७० जिस प्रकार सम्यक् या सद्भूत व्यहारव से मिथ्या या असद्भूत व्यवहार की निवृत्ति होती है उसी प्रकार निश्चय से समस्त व्यवहार के विकल्पो