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________________ १८. निश्चय नय अर्थ - अशुध्द निश्चय नय से संसारिक सुख दुख यद्यपि जीव जनित है । परन्तु शुध्द निश्चय नय से कर्म जनित है । (यह शब्द निश्चय का उदाहरण है ) ६२५ ८. एक देश शुद्ध निश्चय नय का लक्षण । २. व् द्र. सं. । टीका । ४८ । २०५ " रागद्वेषादय कि कर्मजनिता. किं जीवजनिता इति । तत्रोतरविवक्षितेक देश शुध्दनिश्चयेन कर्मजनिता भण्यते, तथैवा श ुध्द निश्चयेन जीव जनिता इति । " अर्थ - 'रागद्वेषादिक कर्म जनित है या कि जीव जनित है' ऐसा प्रश्न होने पर उत्तर देते है कि विवक्षित एक देश शुध्द निश्चय नय से तो कर्मजनित है और अशुध्द निश्चय नय से जीव जनित है । दोनों ही उध्दरणों में रहा है, परन्तु एक मे उसे और दूसरे मे एक देश शुध्द व उदाहरण एक ही समझना । औदायिक को कर्म जनित बताया जा शुध्द निश्चय का विषय बनाया है निश्चय का । अतः दोनों के लक्षण उपरोक्त उध्दरणो मे से नं. २ वाले उध्दरण पर से यह बात रागादिकों को भी स्पष्टत जानने में आती है कि वहा जो उन अशुध्द निश्चय का विषय बना कर जीव का बताया है, वह एक देश अशुद्धता की अपेक्षा ही है, पूर्ण अशुद्धता की अपेक्षा नही । फिर भी यहा एक देश अशुध्द निश्चय का निर्देश न करके अशुद्ध निश्चय का ही निर्देश किया है । इसी प्रकार आगे अश ुध्द निश्चय के उध्दरणों सर्वत्र औदयिक व क्षायिपशमिक दोनों भावो को 'अशुद्ध विषय बनाया जायेगा । वहा अपनी तरफ से यथा योग्य रूप से क्षायोपशमिक भावों का ग्रहण करते समय एक देश अशुध्दता समझ निश्चय का
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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