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८. ऐक देश शुद्ध निश्चय
नय का लक्षण
१८. निश्चय नय
इस एक देश दृष्टि में बारी बारी भले शुद्ध भाग को पृथक ग्रहण करके जीव को पूर्ण शुद्ध कहलीजिये या अश ुद्ध भाग को पृथक ग्रहण करके जीव को पूर्ण अशुद्ध कह लीजिये । जिस प्रकार कि स्वर्ण भाग को ग्रहण करके ४ तोला पूरा स्वर्ण कह लीजिये या ताम्र भाग को ग्रहण करके ६ माशे पूरा ताम्बा कह लीजिये । एक देश दृष्टि मे दोनो ही अपने अपने स्थान पर पूरे पूरे दिखाई देगे । शुद्धाग को पृथक ग्रहण करने वाली यह एक देश दृष्टि ही एक देश श ुद्ध निश्चय नय कहलाती है । इस दृष्टि से साधक अवस्था मे भी जीव सिद्धो वत पूर्ण शुद्ध ही ग्रहण करने मे आता है । अतः कहा जा सकता है कि यह साधक पूर्ण शुद्धोपयोग का कर्ता तथा अनन्त परमानन्द का भोक्ता है ।
आगम मे क्योकि जीवो को ऊचे उठाने की भावना प्रमुख है अत यहा एक देश शुद्ध निश्चय नय का कथन तो आ जाता है पर एक देश अशुद्ध निश्चय नय का कथन नहीं किया जाता । अपनी बुद्धि से हम एक देश अशुद्ध निश्चय नय को भी स्वीकार कर सकते है । जितनी कुछ नय आगम मे लिखी है उतनी ही हो ऐसा नियम नही । वहा तो एक सामान्य नियम बता दिया है। उसके आधार पर अन्य नय भी यथा योग्य रूप से स्थापित की जा सकती है । जिस प्रकार साधक के क्षायोपशमिक भाव को एक देश शुद्ध निश्चय नय से क्षायिक वत् पूर्ण शुध्द कहा जाता है उसी प्रकार उस को एक देश अश ुध्द निश्चय नय से औदयिक वत् पूर्ण अशुध्द कहा जा सकता है । इसमे कोई विरोध नही |
एक देश शुद्ध निश्चय नय व शुध्द निश्चय नय के उदाहरणो मे कुछ अन्तर नही है, जैसा कि निम्न उध्दरण पर मे जाना जाता है ।
१ प प्र । टीका । ६४।७१/१० “ससारिक सुखदुःख यद्यप्यशुध्द निश्चयनयेन जीवजनित तथापि शुध्द निश्चयनयेन कर्मजनित भवति ।"