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१८. निश्चय नय
६२३ ८. ऐक देश शुद्ध निश्चय
नय का लक्षण आशिक का प्रश्न ही कहा रह गया उस डली के यदि बाहर मे दो टुकड़े करके पृथक पृथ्क रख दिये जाये-ऐक तो ४ तोले के स्वर्ण भाग का टुकड़ा और दूसरा ६ माशे के ताम्र भाग का टुकड़ा तो बताओ उस ४ तोले वाले टुकड़े मे आशिक श द्धता है या पूर्ण श द्धता कहना होगा की पूर्ण शुद्धता । बजाये वाहर मे पृथक पृथ्क टुकड़े करने के यदि अन्तरग दृष्टि में ही उसके टुकड़े करके उन्हे उपरोक्त प्रकार पृथक पृथ्क रखे तो, क्या ४ तोले वाले स्वर्ण भाग मे आशिक स्वर्ण दिखाई देगा या पूरा स्वर्ण ? कहना होगा कि वहा भी बाह्य वत् पूरा ही स्वर्ण दिखाई दे रहा है । अंशिक श द्धता का ग्रहण तो तभी तक होता है जब तक कि उस पूरे के पूरे ४३ तोले को एक पदार्थ या एक डली समझते रहें।
इसी प्रकार अधपके भात मे भी जितना कुछ पक चुका है उतना तो पूरा का पूरा ही पका हुआ है और जितना कच्चा है उतना पूरा का पूरा कच्चा ही है। अभेद रूप देखने पर ही आशिक पका हुआ दीखता है । पर यदिपाक भाग की दृष्टि मे पृथक स्थापना कर ली जाये , तो वह भाग तो अपने अन्दर पूरा का पूरा पका हुआ है । यद्यपि स्वर्ण वत बाहर मे इस पाकांश को भात मे पृथक करके रखा जाना सम्भव नही है परन्तु दृष्टि में ऐसा किया जाना सम्भव है।
इसी प्रकार साधक जीव की आशिक शान्ति व शुद्धता भी दृष्टि मे पृथक स्थापित करके देखी जा सकती है , भले बाहर मे उसे पृथक करना असम्भव हो । देखना तो यह है कि पृथक स्थापा हुआ व शुद्धता का भाग अपने अन्दर पूर्ण शुद्ध है कि आशिक शुद्ध बस समस्या सुलझ गई। भले ही सारे जीव को देखने पर उस मे आशिक या एक देश शुद्धता दिखाई देती हो पर इस एक देश शुद्धता वाले भाग को उस से पृथक निकाल कर देखने पर वह पूरा शुद्ध ही दिखाई देगा। यही दृष्टि एक देश दृष्टि कहलाती है।