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१८. निश्चय नय
६२२ ८.ऐक देश शुद्ध निश्चय
नय का लक्षण स० सा० । आ० । ७२ " यत्वात्यास्रवयो भेदज्ञानपि नास्रवेभ्यो
निवृत्त भवति तज्ज्ञानमेव न भव तीति ज्ञानाशो ज्ञाननयोऽपि निरस्त ।"
अर्थ:- जो आत्मा और आस्रवो का भेद ज्ञान है वह भी
आस्रवो से निवृत्त न हुआ तो वह ज्ञान हो नहीं है। ऐसा कहने से मिथ्या प्रमाण ज्ञान के अश मिथ्या ज्ञान नय का निराकरण हुआ।
ऐक देश शुद्ध निश्चय नय के लक्षण उदाहरण कारण व प्रयोजन ८ ऐक देश शुद्ध निश्चय भी उस केवल शुद्ध निश्चय नय वत ही है।
नय का लक्षण अन्तर केवल इतना है कि शुद्ध निश्चय नय तो पूर्ण शुद्ध क्षायिक भावो के साथ जीव की तन्मयता या अभेद देखता है और यह क्षायोपशमिक भाव में रहने वाले केवल शुद्ध अश के साथ जीव की तन्मयता या अभेद देखता है। शान्ति पथ का एक साधक शुद्ध निश्चय नय के लक्ष्य पर जू जूं जीवन मे अभ्यास करता हुआ ऊचे ऊचे बढता है तूं तूं उसका जीवन अधिक अधिक शान्त होता जाता है । यह ठीक है कि पूर्ण शान्ति मे अभी स्थिरता हुई नहीं, परन्तु जितनी कुछ भी हुई है वह शान्ति है या अशान्ति, उतने अश मे अभिलाषाए हे या सन्तोष ? कहना होगा कि उतने अश मे तो वह शान्त व सन्तुष्ट है। उतना अश अपने अन्दर पूर्ण है कि अधुरा ? कहना होगा कि उतना अश तो पूरा ही है ।
जैसा कि खोटे स्वर्ण मे रहने वाला स्वाश अपने अन्दर में पूरा शुद्ध है या कम शुद्ध ? ४ तोले सोने मे ६ माशा ताबा मिला यद्यपि पूरी की पूरी ४३ तोले की डली तो आशिक शुद्ध व आशिक अशुद्ध है, परन्तु क्या उसमे रहने वाले ४ तोले वाले भाग को भी आशिक शुद्ध कहोगे ? जब दृष्टि मे ही उसके दो टुकड़े कर दिये तो