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१८. निश्चय नय
. ४. निश्चय नय के
कारण व प्रयोजन शुद्ध निश्चय नय का विपय तब केवल पारिणामिक भाव होगा, शुद्ध निश्चय नय का विपय केवल क्षायिक भाव होगा एक देश शुद्ध निश्चय नय का विषय केवल क्षयोपशम भाव होगा अर्थात क्षयोपशम भाव मे रहने वाला शुद्धाश होगा, और अशुद्ध निश्चय नय का विषय केवल औदयिक भाव तथा क्षयोपशम भाव में रहने वाला अश द्धाश होगा। यहा सामान्य निश्चय नय का प्रकरण होने से सर्व ही वे भाव इस के विषय है क्योकि यहाँ केवल इतना दिखाना अभीप्ट है कि यह सारे भाव वस्तु के निज आश्रितभाव है। ___ जैसी वस्तु है उस को वैसी ही जानना निश्चय है । निश्चित
४. निश्चय नय के रूप से वस्तु भेद रूप नहीं है । भले ही अपेकारण व प्रयोजन क्षाओ द्वारा उसमे भेद देखे जा सकते हो परन्तु इस प्रकार ज्ञान के विकल्पो के द्वारा उसमे भेद पड नही जाते । जैसे अग्नि मे से भले भिन्न भिन्न समयो मे प्रकाश ऊष्णत्व आदि को प्रमुखत. प्रयोग में लाने के विकल्प जागृत होते हो पर अग्नि मे प्रकाश व ऊष्णत्व सदा एक रस रूप ही रहते है ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है। भले ही दो पदार्थ परस्पर मे मिलकर एक मेक से हुए दीखते हो परन्तु वे पृथक ही रहते है, एक के गुण दूसरे मे मिलने नही पाते । जैसे कि ताम्बे के साथ मिलकर स्वर्ण भले कुछ लाल सा दीखता हो पर वास्तव मे वह पीला ही रहता है यह निश्चत रूप से कहा जा सकता है । वस्तु के इस अभेद व स्वगुण समवेत पने का निश्चय कराने के कारण इस नय को निश्चय नय कहते है। यह तो इस नय का कारण है । कहा भी है ।
१. प. ध.पू.।६६३ "अपि निश्चयस्य नियत हेतु. सामान्य मात्र
मिह वस्तु ।"
अर्थ-वस्तु सामान्य मात्र एक अद्वैत सत् है, इसी प्रकार का
निश्चय ही निश्चय नय का नियत हेतु है ।