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________________ ६०६ १८ निश्चय नय ४. निश्चय नय सामान्य के कारण प्रयोजन वस्तु के या विश्व के बाह्य क्षणिक रूपो या पर्यायो पर दृष्टि रहने पर तो विकल्पो की चचलता बनी रहती है। चचल ज्ञेय के आधार पर ज्ञान भी स्वभाव से चंचल ही रहेगा। इस की स्थिरता के लिये आधार भी स्थिर ही होना चाहिये । तथा अपूर्ण ज्ञेय के आधार पर विचारणाओ मे सशय वना, रहना स्वाभाविक है। नि सशय ज्ञान के लिये आधार भी पूर्ण होना चाहिये । विकल्पो की चंचलता व सशय ही अशान्ति के कारण है। नि सशय स्थिर चित्तता ही शान्ति का लक्षण है । शान्ति व अशान्ति का सम्बन्ध वर्तमान विचारणा है । अत. यदि विचारना का आधार पूर्ण अभेद द्रव्य को बनाया जाये तो उसमे सशय व चचलता का प्रवेश नही हो सकता । इसी का नाम शान्ति है । ऐसी पूर्ण अभेद वस्तु को दर्शाना क्योकि निश्चय नय का काम है अत: इसका आश्रय लेना ही शान्ति मार्ग में प्रयोजनीय है। कहा भी है-- १ नय चक्र गद्य । पृ० ६९-७० "यथा सम्यव्यवहारेण मिथ्या ब्यव हारो निवर्तते, तथा निश्चयेन व्यवहारविकल्पोऽपि निवर्तते यथा निश्चय नयेन व्यवहार विकल्पोऽपि निवर्तते तथा स्वपर्यवसित भावेनैकत्व विकल्पोऽपि निवर्तते । एव हि जीवस्य योड सौ स्वपर्यवस्ति स्वभाव स एव नय पक्षातीत ।" अर्थः-जिस प्रकार सद्भुत व्यवहार से निमित्ताधीन असद्भुत व्यवहार की निवृत्ति होती है, उसी प्रकार निश्चय से व्यवहार के द्वैतरूप विकल्पो की भी निवृत्ति हो जाती है जिस प्रकार निश्चय से व्यवहार विकल्पो की निवृत्ति होती है उसी प्रकार निज चैतन्य की अद्वैत भावना से या अनुभव मे तल्लीन हो जाने से, निश्चय नय के एकत्व वाले विकल्प की भी निवृत्ति हो जाती है । इस
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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