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निश्चय नय
लोक मात्र है, रूप रहित स्वभाव वाला होने के कारण मूर्त नही है, पुद्गल परिणामों के अनुरूप निज चैतन्य परिणामो का आत्मा के साथ सयुक्त होने के कारण वह सयुक्त है ।"
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( अर्थात इन सर्व निज के अपने गुणो व शुद्धाशुद्ध पर्यायो के कारण ही वह उन उन विशेषणो वाला कहा जा सकता है, निमित्त रूप शरीर तथा अन्य वाह्य पदार्थो के करने या सयोग को प्राप्त होने के कारण नही । ऐसा निश्चय नय बताता है 1 )
अर्थ -
३. निश्चय नय सामान्य
का लक्षण
४ प्र सात. प्र परि । नय न. ४५ तत्तु . . . . निश्चय नयेन केवल वध्यमान मुच्यमान बन्ध-मोक्षोचितस्निग्ध रूक्षत्व गुण परिणत परमाणु वद्वन्धमोक्षयोरद्वैददुर्वात ।”
आत्म द्रव्य निश्चयनय से बन्ध और मोक्ष में अद्वैत का अनुसरण करने वाला है । अकेले वध्यमान और मुच्यमान ऐसे वन्धमोक्षोचित स्निग्धत्व रूक्षत्व गुण रूप परिणत परमाणु की भांति 1
(अर्थ
५. वृ॰ द्र स।टी ।३।११ “सत्ताचैतन्यबोधादि शुद्ध भाव प्राणा निश्चयेनेति । "
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निश्चय से तो सत्ता चैतन्य या ज्ञानादि ही जीव के शुद्ध भाव प्राणा है, इन्द्रिय आदि नही । )
६. वृ द्र. स ।टी।८। २२ " ( निश्चयेन) शुद्धाश ुद्ध भावना परिणममानानामेव कर्तृत्वं ज्ञातव्यं, न च हस्तादि व्यापाररूपाणामिति ।"