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१८ निश्चय नय
इन तीनो मे न. १ वाला लक्षण तो निश्चय का शब्दार्थ मात्र है। इसलिये सामान्य निश्चय व उसके उत्तर भेदों मे नं. २ व ३ वाले लक्षणो का ही प्रमुखत ग्रहण करने में आता है । शुद्ध व अशुद्ध त्रिकाली व क्षणिक, सर्व व कोई एक अग से तन्मय वस्तु सामान्य निश्चय नय का विषय है, पारिणामिक भाव से तन्मय वस्तु परम निश्चय नय का विषय है । क्षायिक भाव से तन्मय वस्तु शुद्ध निश्चय नय का विषय है, क्षयोपशमिक भाव की एक देश शुद्धता से तन्मय वस्तु एक देश शुद्ध निश्चय नय का विषय है, और औदायिक भाव से तन्मय वस्तु अशुद्ध निश्चय नय का विषय है । अव इन्ही लक्षणो की पुष्टि व अन्यास के अर्थ कुछ आगम कथिक उद्धरण देखिपे । यहा इतना अवश्य समझना कि निश्चय नय तो जैसी अखण्ड वस्तु है. वैसी की वैसी को निरूपण करता है, उसमे भेद डालता नही, न ही किसी अन्य को अन्य मे मिलाकर कहता है, इसलिये इसका कथन परमार्थं व सत्यार्थं है उपचार नही है। इसी से ज्ञानी जन सदा इस नय अर्थात इसके विषय भूत स्व अगो के साथ तन्मय ध्रुव पदार्थ का आश्रय करना ही शान्ति मार्ग के लिये सर्वदा उपादेय वतलाते है ।
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३. निश्चय नय सामान्य
का लक्षण
अब इन लक्षणो की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ आगम कथित उद्धरण देखिये |
१लक्षण नं. १ ( एवं भूत या सत्यार्थ निरुपण )
१ श्ल वा । पु २। ५८५। ८ " निश्चय नय तो एवभूत नय है ।"
( रा. वा. हिन्दी । १ । ७ । ६५)
२. स. सा । ता. वृ. 1३४ " नियमान्नियश्चयान् मन्तव्यम् ।"
(नि. सा. । मू १५९ )