________________
१८. निश्चय नय
५८८
१. अध्यात्म पद्धति
- परिचय वस्तु है । अत वस्तु के सारे अगो का परिचय पा लेने के पश्चात वह जानना भी आवश्यक है कि इन सर्व अगो में से कौन से अंग ऐसे है जिनका विचारना शान्ति के लिये बाधक हे ।
जानी तो बहुत बाते जाती है, पर सवको उपकारी नही माना जाता। कुछ बाते त्यागने के लिये जानी जाती है और कुछ अपनाने के लिये । विप को भी जाना जाता है पर त्यागने के लिये और अमृत को भी जाना जाता है पर ग्रहण करने के लिये । शत्रु को भी जाना जाता है पर उससे बचने के लिये और मित्र को भी जाना जाता है। पर उसके साथ हसने बोलने के लिये। हिसा को भी जाना जाता है पर अहितकारी व अकर्तव्य समझने के लिये और अहिंसा को भी जाना जाता है पर हितकारी व कर्तव्य समझने के लिये । आगम पद्धति ने हम को वस्तु भत अगो का परिचय तो दे दिया परन्तु यह नही बताया कि इन में से कौन से अग त्याज्य है अर्थात विचारणा के विषय बनाने योग्य नहीं है और कौन से ग्राह्म है अर्थात विचारणा के विपय बनाने योग्य है । कौन से अंगों की विचारणा शान्ति की बाधक है और कौन से अंगो की विचारणा शान्ति की साधक है । कौन से अगो का ज्ञान उन से बचने के लिये है और कौन से अंगों का ज्ञान विचारणा में अवकाश पाने के लिये है । कौन से अंग अकर्तव्य भूत है और कौन से कर्तव्य भूत है इत्यादि।
अध्यात्म पद्धति, आगम पद्धति के ज्ञान की इस कमी को पूरा करती है । इसका स्वतत्र विषय नही है क्योकि ऐसा कोई विषय ही शेष नही रहा जिसका परिचय की आगम पद्धति ने न दिया हो । द्रव्य का, गुण का व पर्याय का, द्रव्य की जातियों का, गुण की जातियो का, पर्यायो की जातियो का, नित्यता का व अनित्यता का, वस्तु के स्व व पर चतुष्टय का, शुद्धता का व अशुद्धता का इत्यादि सर्व ही बातो का अनेक पडखो से परिचय वह दे चुकी है। अब