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________________ १८. निश्चय नय ५८९ १. अध्यात्म पद्धति परिचय उन ही जानी हुई बातो मे हेय व उपादेय का, इष्ट का व अनिष्ट का, कर्तव्य का व अकर्तव्य का विवेक करना ही शेष है, वही काम अध्यात्म पद्धति करती है । अत. इसका विषय भी आगम पद्धति वाला ही है । अन्तर दोनो के कारण व प्रयोजनो मे है जैसा कि आगे प्रकरण वश दर्शाया जायेगा । प्रयोजन भेद के कारण उन की नयो के नामो मे भी भेद है पर विषय भेद नही है। __इसलिये यहा यह अवश्य जान लेना चाहिये कि चर्चा मात्र का विषय बनाने वालो के लिये अध्यात्म पद्धति की नय नही है बल्कि जीवन में उतारने वालों के लिये है। चर्चा मात्र की रूचि वालो के लिये तो आगम नय है । अध्यात्म नय को चर्चा का विषय बनाना कदाचित जीवन के लिये अहितकारी हो जाता है । क्योंकि विचारणाओ मे परिवर्तन करने का प्रयत्न किये बिना उनके आधार पर बाह्य मे ही कुछ परिवर्तन करके स्वच्छन्द का पोषण करने लगता है । जैसे कि व्यवहार को हेय बताने का प्रयोजन तो यहा विचारणाओं मे उसका आश्रय छुडाना है, परन्तु साधारणतः ऐसा नही होता । लौकिक दिशा की २४ घण्टे को नित्य उठने वाली विचारणाये तो जू की तू बनी रहती हैं, हा धर्म सम्बन्धी कुछ बाह्य क्रियाओं को हेय मानकर अवश्य छोड़ बैठता है। इससे तो लाभ की बजाय हानि हो गई । निश्चय को उपादेय बताने का प्रयोजन पर पदार्यो से लक्ष्य हटाकर स्व पर लगाने का है। दूसरे के दोषो व कर्तव्य अकर्तव्यो को न देखकर अपने दोष व कर्तव्य एव अकर्तव्यों को देखना है। परन्तु ऐसा तो नही हो रहा है। चर्चा प्रेम बन्धु इसके आधार पर दूसरो के ही दोष ढ ढ़ कर उन से द्वेष करने लगते हैं। दूसरो पर आक्षेप, कटाक्ष व व्यंग करने लगते है, सो तो प्रयोजन नही है । अपने दोष देखकर उन्हें दूर करने का प्रयोजन है । उसकी सिद्धि के बिना निश्चय नय का ज्ञान तो साधक की बजाये बाधक बन बैठा है। 'निश्चय नय से ठीक है, व्यवहार नय से ठीक नहीं है, निश्चय नय से यह बात गलत है, व्यवहार से तो करने योग्य है ही है, इत्यदि'
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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