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१८ निश्चय नय
सामान्य का तथा उसके अनेकों अगोपागो का, उनके भेद का, व अभेद का शुद्धता का व अशुद्धता का इत्यादि परिचय मात्र देना आगम पद्धति का काम है, ओर जीव या आत्म पदार्थ का परिचय देकर उसमे हेयोपादेय बुद्धि जागृत कराना आध्यात्म पद्धति का काम है | आगम पद्धति के अन्तर्गत नय के अनेको भेद प्रभेदो का विस्तृत कथन हुआ, अव अध्यात्म पद्धति सम्बन्धी नयों का कथन सुनिये |
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१. अध्यात्म पद्धति परिचय
वस्तु को जान लेना मात्र पर्याप्त नहीं है, वल्कि साथ में यह भी जनना आवश्यक है कि यह मेरे लिये लाभदायक है कि हानि कारक, हेय है कि उपादेय । हेयोपादेयता के विवेक बिना केवल जानना तो ज्ञान का भार मात्र है. जिस प्रकार कि सर्प को, "यह सर्प है, विषैला होता है इत्यादि" जानकर भी यदि यह न जाना जाये कि " जीवन का घातक है अत हेय है," तो वह जानकारी किस काम आयेगी । तब तो सर्प से अपनी रक्षा की जानी सम्भव नहो सकेगी । जानने का प्रयोजन तो दुःखो से बचना व सुख पूर्वक जीवन विताना है । इस प्रयोजन कि सिद्धि के बिना जानना किस काम का, अत वह जानना ही कहा नही जा सकता । इसी कारण प्रत्येक नय के साथ उसका प्रयोजन बताया गया । वहा तो प्रयोजन का सम्बन्ध केवल जानने से है और यहा ग्रहण व त्याग द्वारा दुःख निवृत व सुख प्राप्ति से है ।
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शान्ति प्राप्ति ही जीवन का एक मात्र प्रयोजन है अत हमे वस्तु को इसी दृष्टि से जानना चाहिये, केवल जानने मात्र के लिये नही । अध्यात्म इस दृष्टि की पूर्ति करता है । वह हमें दुख: के कारणो से हटाकर सुख के कारणो का परिचय देता है । शान्ति या अशान्ति दोनो का सम्बन्ध अन्तरङ्ग की विचारणाओं से है । विचारणाओ का आधार ज्ञान है और ज्ञान का आधार ज्ञेय या
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