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१७. पर्यायार्थिक नय ५८३
५ पर्यायार्थिक नय
समन्वय इस प्रकार इन पाचो मे कोई अग द्रव्याथिक का विषय है और कोई पर्यायाथिक का । इनमे से एक नय के विषय को भी निकाल ले तो शेष चार से कार्य व्यवस्था की सिद्धि होती नही, इसी कारण पाँचो अंग परस्पर मिल कर रहे तो सम्यक है और किसी एक का भी निषेध करके रहे तो मिथ्या है । इनका परस्पर सम्मेल' कैसे है सो कहा नहीं जा सकता पर जाना जा सकता है। 'शान्तिपथ प्रदर्शन" नाम ग्रन्थ मे इस विषय का काफी विस्तार दिया है। वस्तु को व्यवहियतेति निक्षेपः । व्यवहार, तीन प्रकार, शब्द ज्ञान व अर्थ । अर्थ दो प्रकार भवर्तमान व वर्तमान । शब्द व्यवहार चार प्रकार होता है । अतत्दुगुणे, अतद्वाकारे, अदकाले तQणे, तदाकारे तदाकाले।
८. प्रश्न -नयों के पृथक पृथक ग्रहण मे सम्यक् व मिथ्यापनना
दशाओ?
उत्तर --जिसने अखण्ड द्रव्य का परिचय पा लिया, अर्थात जिसका
परिपूर्ण वस्तु सम्बन्धी सागोपाग प्रमाण ज्ञान विद्यमान है, ऐसे ज्ञानी के लिये तो केवल सामान्य का ग्रहण अथवा केवल एक पर्याय मात्र का ग्रहण भी सम्यक् है, क्योकि भले ही उस समय की विचारणा रूप उपयोग मे न सही पर ज्ञान कोष मे लब्ध रूप से अन्य विशेष तथा आश्रयभूत ध्रुव सत्ता भी उसी समय पड़ी रहती है । परन्तु उसके सागोपाग ज्ञान से शून्य अज्ञानी जन तो सामान्य का ग्रहण करते समय विशेषों का निषेध करने के कारण, और एक एक पर्याय का पृथक पृथक ग्रहण करते समय अन्य पर्यायों का तथा उस सामान्य ध्रुव