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१७ पर्यायार्थिक नय
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५. पर्यायार्थिक नय
समन्वय
सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक का विषय कहना होगा इस नय की अपेक्षा वस्तु उत्पन्न ध्वसी है ।
पुरूषार्थ वस्तु का क्षण क्षण नया नया प्रयत्न विशेष है । सो पर्यायार्थिक का विषय है। इस नय की अपेक्षा जो पुरुषार्थ अब है वह अगले क्षण मे नही है ।
भवितव्य पुरुषार्थ का फल है अर्थात वस्तु की प्रत्येक क्षण का नया नया कार्य या पर्याय है अत. यह भी पर्यायार्थिक नय का विषय है, क्योकि, पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा वस्तु अब कुछ और पर्याय वाली है और अगले क्षण किसी और पर्याय वाली है।
नियति मे तीनो काल की सम्पूर्ण पर्यायों का यथा स्थान जड़ित एक अखण्ड रूप ग्रहण किया गया है, जो टकोत्कीर्ण वत निश्चित है, आगे पीछे नही किया जा सकता है, केवल साक्षी भाव मात्र से देखा जा सकता है । इसे भेद सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक का विषय कहना होगा, क्योकि इस नय की अपेक्षा वस्तु त्रिकाली पर्यायो की विचित्रताओं से तन्मय दीखती है।
निमित्त को यहां स्वीकार नही किया जा सकता, क्योंकि वह सयोग है। यहा आगम पद्धति में वस्तु का निज वैभव मात्र ही दर्शाना अभीष्ट है । अत यहा तो उसका निषेध ही किया जाता है, जिसका ग्रहण परचुष्टय विच्छेदक अश द्ध द्रव्याथिक नय करता है। हा अध्यात्म पद्धति के अन्तर्गत अवश्य उसका ग्रहण कर लिया गया है । वहा उसे विषय करने वाला नय का नाम असद्भ त व्यवहार है, क्योकि, उस नय की दृष्टि से एक द्रव्य अन्य के कार्य में सहायक होता है।