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________________ १७ पर्यायार्थिक नय ५८१ -५ पर्यायार्थिक नय समन्वया ही तीन रूप तथा तीन रूपों वाला वह अकेला एक विशेष मनुष्य है । 1 इस प्रकार एक ही मनुष्य को अनेको रूप से देखा गया । मुनि आदि रूप अवस्थाक्षों के बहुमान रहित केवल मनुष्य सामान्य का ग्रहण द्रव्यार्थिक नय रूप समझो, पृथक पृथक गृहस्थ, मुनि व अर्हन्त रूप से उसका ग्रहण पर्यायार्थिक नय रूप समझो, और तीनो अवस्थाओ में ओत प्रोत उसका अद्वैत रूप से ग्रहण प्रमाण का विषय समझो । C इनमे से पहिला विशेष गौण सामान्य का ग्रहण है, दूसरा सामान्य गौण विशेषों का ग्रहण है और तीसरा सामान्य विशेष का युगपत ग्रहण है । यही तीनो मे अन्तर है । पहिला ग्रहण द्रव्यार्थिक नय रूप है और दूसरा ग्रहण पर्यायार्थिक रूप है और तीसरा ग्रहण प्रमाण रूप है । ७. प्रश्न - - इसी द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक व प्रमाण की परस्पर मैत्री को किसी आगम विषय पर लागू करके दिखाइये ? उत्तर - बहुत सुन्दर वात है । देखो कार्य व्यवस्था सम्वन्धी बात जो शान्ति पथ प्रदर्शन के अन्तर्गत सवेरे को चलती है, उसमे पाच समवाय बताये गये - स्वभाव, निमित्त, पुरुषार्य, नियति व भवितव्य । इनको निम्न प्रकार सं नयो मे गर्भित किया जा सकता है । स्वभाव के अन्तर्गत वहा बताया है कि वस्तु परिवर्तन शील है । अत. स्वभाव को यहां उत्पाद व्यय
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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