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१७ पर्यायार्थिक नय
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४ पर्यायार्थिक नय विशेप के लक्षण
भाव ग्राहक शुद्ध द्रव्याथिक नय में उसका ग्रहण किया गया है । यहा इस नय के अन्तर्गत उसी का अनित्य स्वभाव ग्राह्य है।
___यहा यह जानते रहना चाहिये की स्वभाव शक्ति का नाम है, व्यक्ति का नही, अत पारिणामिक भावरूप यह अनित्यता भी पदार्थ की एक सामान्य व त्रिकाली शक्ति है, किसी एक क्षणिक पयोय रूप व्यक्ति नही । फिर भी नित्यानित्य अखण्ड स्वभाव का यह एक अश या विशेष ही तो है, पूर्ण स्वभाव तो नही । नित्यता व अनित्यता दोनो ही वस्तू के अश होते है, परन्तु नित्यवाला अश सामान्य कहा जाता है और अनित्य वाला अंश विशेष, क्षोकि नित्यता अनेको क्षणिक अशो मे अनुस्यूत रूप से सर्वदा वह की वह पाई जाती है, परन्तु अनित्यता मे प्रति क्षण नवीनता देखी जाती है, भले व सूक्ष्म हो कि स्थूल । एक त्रिकाली सामान्य स्वभाव का विशेष होने के कारण अनित्य स्वभाव को यहा पर्याप कहा गया है, क्योकि विशेष का नाम पर्याय है। पर्याय शब्द से तात्पर्य यहा न अर्थ पर्याय से है और न व्यज्जन पर्याय से । वे दोनो तो एक सूक्ष्म या स्थूल क्षण पर्यन्त रहकर विनष्ट हो जाती है । यहा तो पर्याय शब्द से तात्पर्य वस्तु का त्रिकाली पारिणामिक अनित्य स्वभाव है । यह पर्याय है अर्थ या प्रयोजन जिसका, वह 'स्वभाव अनित्य शुद्ध पर्यायाथिक नय' है ।
यहा प्रश्न किया जा सकता है कि पारिणामिक भाव को पहिले सर्वया नित्य व पर्यायों से निरपेक्ष बताया गया है, फिर यहां उसमे अनित्यता की बात क्यो कही जा रही है ? सो ऐसा नही है, क्योकि यहा वाली अनित्यता भी वास्तव मे नित्य ही है, क्योकि प्रतिक्षण परिणमन करते रहना वस्तु का त्रिकाली नित्य स्वभाव है । यहा नित्यता का अर्थ कूटस्थपना ग्रहण न करना, बल्कि वस्तु में सर्वदा ही पाया जाने वाला कोई स्वभाव ग्रहण करना है । जिस