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१७ पर्यायार्थिक नय
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४. पर्यायार्थिक नय
विशेष के लक्षण
(अर्थ- कर्मो के क्षय से उत्पन्न तथा कारण का अभाव हो
जाने पर सदा रहने वाली ऐसी जो क्षायिक भाव रूप पर्याय है, उस को विषय करने वाले नय को सादि नित्य नय कहते हैं।)
२. प्रा. प ।। पृ.७३ ‘सादि नित्यपर्यायार्थिकको यथा सिद्ध
पर्यायो नित्य.।"
(अर्थ -- सादि नित्य पर्यायार्थिक ऐसे है जैसे कि "सिद्ध पर्याय
नित्य है" ऐसा कहना ।) नय चक्र गद्य पृ६ "पर्यायार्थो भवेत्सादि."व्यये सर्वस्य कर्मणः ।
उत्पन्न सिद्ध पर्याय ग्राहको नित्य रूपक ।२।" (अर्थः-- सादि नित्य रूपक पर्यायार्थिक नय सर्व कर्मों के क्षय
से प्रगट होने वाली सिद्ध पर्याय का ग्राहक है।)
क्योकि सादि नित्य पर्याय को ग्रहण करता है इसलिये इसका "सादि नित्य" ऐजा नाम सार्थक है। यह तो इसका कारण है । जीव के पूर्ण शुद्ध क्षायिक भाव का परिचय देना इस नय का प्रयोजन है।
३. स्वभाव अनित्य शुध्द पर्यायार्थिक नय:
वस्तु नित्यानित्यात्मक स्वभाव वाली है। स्वभाव अन्य पदार्थ की सहायता आदि की अपेक्षा नही रखा करता, इसलिये वस्तु स्वय तथा स्वत सिद्ध ऐसी ही है । स्वभाव का नाम ही पारिणामिक भाव है, जिसका विस्तृत परिचय कि पहले दिया जा चुका है । स्वभाव होने के नाते उसे भी नित्यानित्य माना गया है । उसके नित्य रूप का परिचय ही पहिले अधिकार न ७ मे दिया गया है, तथा परम