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३. वस्तु व ज्ञान सम्बन्ध
. २. वस्तु अनेकागी है
के पृथक कर लेने पर वस्तु कुछ नही रहती 'जैसे कि रंग, गंध व स्वाद निकाल लेने पर आम तास का कोई पदार्थ नहीं रहता, या उष्णता प्रकाशत्व आदि भाव निकाल लेने पर अग्नि नाम का कोई पदार्थ नहीं रहता। इसलिये अनेक गुणो का समुद्राय रूप ही, वस्तु सिद्ध होती है। इसी प्रकार- पर्यायों के पृथक कर लेने पर गुण कुछ नही रहता । जैसे कि खट्टा, मीठा, चरपरा आदि सर्व भाव निकाल लेने पर जिल्हा का सामान्य विषय या रस नाम का गुण किसे कहेगे ।' इसलिये पर्यायों के समूह को गुण कह सकते है। अनेक पर्यायो के क्रमवर्ती (आगे पीछे प्रतीति में आने वाले) समुदाय का नाम एक गुण है । और अनेक गुणो के अक्रमवर्ती (एक ही समय प्रतीति मे आने वाले रूप, रस, गध, वर्ण) वत समुदाय का नाम वस्तु है । अतः वस्तु अनेक गुणों व पर्यायो के समुदाय के अतिरिक्त और कुछ
नही।
. इन गुणो व पर्यायों के कारण वस्तु में अनेकों विरोधी बाते भी देखने मे आती है। जैसे कि एक कुत्ता बदल कर मनुष्य बन गया । कुत्ते की अवस्था मे तो उसकी कल्पनाये या संकल्प विकल्प कुत्ते की जाति के ही थे मनुष्य की जाति के नहीं। वहां तो वह किसी को काटने या भो भों करने का या दुम हिलाने का विकल्प करता था । पर मनुष्य होने पर उस प्रकार के विकल्प नहीं करता, यहां धन कमाने का विकल्प करता है जो कुत्ते के रूप मे नही करता था। इस प्रकार ज्ञान के अन्तर्गत होने वाली कल्पनाये बदल गई है। पर फिर भी. कुत्ते और मनुष्य की उन सब कल्पनाओ मे ओत-प्रोत ज्ञान का समानजातीयपना ज्यो का त्यों है। इसी प्रकार पहिले तो आकार चौपाया था और अब दो पाया है, पर आकार सामान्यपने की जाति ज्यो की त्यो रही, वह तो बदलकर ज्ञान जाति रूप हो नही गई। इस प्रकार सर्व गुण ही मानों, बदल गये; और इन ज्ञान व आकार आदि सर्वगुणो की समुदायभूत, वह वस्तु भी बदल कर कुत्ते से मनुष्य