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३. वस्तु व ज्ञान सम्बन्ध ,
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३. विश्लेषण द्वारा पराक्ष ज्ञान
बन बैठी, पर बदल जाने पर भी जीव सामान्य की जातीयता तो ज्यों की त्यो ही रही, वह तो बदलकर जड़ रूप हुई नहीं इस प्रकार सर्व गुणों व अखंड वस्तु में परिवर्तन आ जाने पर भी गुणों व वस्तु की उस उस जाति, का ज्यों का त्यों बने - रहना तो गुण व वस्तु की नित्यता है, और उन उन की अवस्थाओं का बदलते रहना उन ही गुणों व. वस्तु की अनित्यता है । इस प्रकार एक ही वस्तु नित्यरूप से भी देखी जा सकती है। और अनित्यरूप से भी 1 समान जातीयपने की अपेक्षा नित्य रूप से, और अवस्था मे फेरफार हो जाने की अपेक्षा अनित्य रूप से ।
वस्तु के इस अनेकांगीपने को ही अनेकान्त कहते है । क्योकि जैसे कि पहिले बताया जा चुका है, एक ही शब्द भिन्न-भिन्न स्थलों पर। भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ करता है। इसका कारण है यह कि कथनीय भाव तो अधिक हैं और शब्द थोड़े । इसलिये जब तक एक ही शब्द को अनेकों भावों का वाचक भिन्न-भिन्न स्थलो पर न बनाया जाय, व्यवहार नहीं चल सकता। यहा 'अन्त' शब्द का अर्थ 'समाप्ति' नहीं है बल्कि वस्तु के अंग या वस्तु के धर्म या वस्तु के स्वभाव (गुण-पर्यायादि) है। अतः वस्तु को अनेकान्त, अनेकाग, अनेक धर्मात्मक, अनेक स्वभावी, अनेक गुणात्मक, गुण पिंड आदि नामो से पुकारा जाता है । शब्द का अर्थ एक बार निर्णय हो जाने पर आगे-आगे इस प्रकरण मे वह शब्द उसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ समझना । शब्द सबंधी शका न करना क्योंकि शब्दो का पक्ष नही है । आप जो भी चाहे नाम रख सकते है, उस उस-भाव को दर्शाने के लिये।
जैसा कि कल बताया गया था, वस्तु को पढ़ने या पढ़ाने का
क्रम वस्तु को खंडित करके ही होना सम्भव ३ विश्लेषण
है । यहा वस्तु को खंडित करने से तात्पर्य कुल्हाड़ी
लेकर उसे चीरना नहीं है। बल्कि ज्ञान मे ही द्वारा । परोक्ष ज्ञान
उसका विश्लेषण करना है, उसका analysis 1 ' करना है। वस्तु को पढने का यही वैज्ञानिक ढंग