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१७ पर्यायार्थिक नय
१. पर्यायार्थिक नय
सामान्य का लक्षण । हो कारण है । इस प्रकार द्रव्य ही जिसका अर्थ है ऐसा वह कारण ही स्वय कार्य है । कार्य उस कारण सं पृथक कुछ नहीं है। इसलिये कार्य और कारण इन दोनो मे किसी भी प्रकार का भेद नहीं है । "वे दोनो एकाकार ही है, जिस प्रकार कि अगुलि व उसके पर्व एक ही वस्तु है, पृथक पृथक नही । इस प्रकार कार्य व कारण मे अद्वैत देखना तो द्रव्यार्थिक नय है ।
सब ओर से ग्रहण की जाये सो पर्याय है । वह पर्याय ही स्वय कार्य है, द्रव्य नही क्योकि अतीत पर्याय वाला द्रव्य तो विनष्ट हो चुका है और अनागत पर्याय वाला द्रव्य अभी उत्पन्न नहीं हुआ है, इसलिये इन दोनो के व्यव्हार का अभाव है । वह वर्तमान पर्याय वाला द्रव्य ही कार्य व कारण दोनो मज्ञाओ को धारण करता है।" ऐसा है अर्थ या प्रयोजन जिसका वह पर्यायार्थिक नय है ।
नोटः-(इस लक्षण सम्बन्धी अन्य अनेको उद्धरण ऋजसूत्र
नय के प्रकारण न. २ मे लक्षण न. ४ के अन्तर्गत देखिये ।)
४ लक्षण नं०४ (द्रव्य गौण पर्याय मुख्य):--
१ वृ. न च।१६० "पर्याये गौण कृत्वा द्रव्यमपि च यो हिगृह
णाति लोके । सद्रव्यार्थिको मणि तो विपरीत. पर्याया
र्थिक नय ।१९०।" अर्थ -पर्याय को गौण करके द्रव्य को ही अर्थात सामान्य अद्वैत
द्रव्य की सत्ता को ही लोक मे जो ग्रहण करता है वह