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________________ - - - १७ पर्यायार्थिक नय५५१ १ पर्यायाथिक नय सामान्य का लक्षण अर्थ-ऋजुसूत्र नय के प्रतिपादक वचनो का विच्छेद जिस काल मे होता है, वह (काल) जिन नयो का मूल आधार हे वे पर्यायार्थिक नय है। विच्छेद अथवा अन्त जिस काल मे होता हे उस काल को विच्छेद कहते है । वर्तमान वचन को ऋजुसत्र वचन कहते है, और उसके विच्छेद को ऋजुसूत्र वचन विच्छेद कहते है । वह ऋजुसूत्र के प्रतिपादक वचनो का विच्छेद रूप काल जिन नयो का मूल आधार है उन्हे पर्यायार्थिक नय कहते है । अर्थात ऋजसूत्र के प्रतिपादक (वर्तमान) वचनों के विच्छेद से लेकर एक समय पर्यन्त वस्तु की स्थिति का निश्चय करने वाला पर्यायार्थिक नय है। (अर्थात जिस समय उस क्षणिक पदार्थ का प्रतिपादन समाप्त करने मे आये उस समय से आगे की एक समय मात्र वस्तु की स्थिति उस नय का विपय है) ३ लक्षण ३. (कार्य-कारण भाव का अभाव): रा वा. ११।३३।१।६।४ "अथवा अर्यते गम्यते निष्पद्यत इत्यर्थः कार्यम् । द्रवति गच्छतीति द्रव्य कारणम् । द्रव्यमेवार्थो ऽस्य कारणमेव कार्य नार्थान्तरम्, न च कार्यकारणयो. कश्चिद्रूपभेद. तदुमयमेकाकारमेव पर्वाड्गुति द्रव्यवदिति द्रव्यार्थिक परि समन्तादाय पर्याय । पर्याय एवार्थकार्यमस्य न द्रव्यम् अतीतानागतयौर्विनष्टानुत्पणत्वेन व्यवहाराभावात्, स एवैक' कार्यकारणव्यपदेश भागिति पर्यायार्थिक ।" अर्थः-जो गमन करे या निष्पन्न हो उसे कार्य कहते है । जो द्रवण करे या गमन करे उसे द्रव्य कहते है । वह द्रव्य
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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