________________
१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५४०
१८. द्रव्यार्थिक के भेद
प्रभेदो का समन्वय होना प्रत्यक्ष बाधित है । अत द्रव्य का एक अखण्ड स्वभाव उस के ही गुणो व पर्यायो मे अन्वय रूप से रहता है, ऐसा ग्रहण इन नय द्वारा हो ज ता है ।
१० प्रश्न -परम भाव ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय और कर्मोपाधि
निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक मे क्या अन्तर है ?
उत्तर --पहिला जो परम भाव ग्राहक है वह जीव सामान्य को
त्रिकाली शुद्ध देखता है और दूसरा जो कर्मोपाधि निरपेक्ष है वह उसे ही सादि शुध्द देखता है।
११ प्रश्न -कर्मोपाधि निरपेक्ष व कर्मोपाधि सापेक्षमे क्या अन्तर है ?
उत्तर -पहिला भेद जीव की क्षायिक भाव स्वरूप सिब्दवत्
शुध्द देखता है और दूसरा भेद उसे ही औदयिक भाव स्वरूप ससारी वत् अशुध्द देखता है ।
१२ प्रश्न- नय युगलो को दश नेि का क्या प्रयोजन है ?
उत्तर ---वस्तु मे जहा अभेद वैठा है वहा ही भेद भी है । जहा
नित्यता है वहा ही अनित्यता भी है, जो सर्व भेदो व विशषो से व्यावृत्त है वही सर्व विशेषो में अनुस्यूत भी है, जो क्षायिक भाव स्वरूप शुध्द है वही औदयिक भाव स्वरूप अशुध्द भी है, इस प्रकार एक ही सामान्य पदार्थ मे विरोधी धर्मों को युगपत प्रकाशित करना इस नय युगलो का प्रयोजन है, और यही अनेकान्त है ।