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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५३५ १८. द्रव्याथिक क भेद
प्रभेदो का समन्वय इस पर से सिद्ध होता है कि भले ही उष्णता व प्रकाश अग्नि मे ओत प्रोत एक रस रूप होकर पड़े हो, पर इनका प्रयोग व अनुभव भिन्न भिन्न रूप मे हो रहा है । जो उष्णता का प्रयोग व अनुभव है वह प्रकाश का प्रयोग व अनुभव नहीं है, और इसी प्रकार जो प्रकाश का प्रयोग है वह ऊष्णता का प्रयोग व अनुभव नही है । अतः भले ही क्षेत्र या प्रदेशो की अपेक्षा वे दोनों अभेद हों, परन्तु अपने अपने भाव या स्वरूप की अपेक्षा दोनों मे भेद अवश्य है। वस्तु भेदा-भेदात्मक है। यही दर्शाना तो अनेकान्त की महिमा है।
४. प्रश्न -पहिले आप स्वयं ऐसा कह आये है कि भेद रूप तो
वस्तु वास्तव में है ही नहीं, भेद का ग्रहण वस्तु के अनुरूप नही । इसलिये भेद कल्पना सापेक्ष सर्व ही अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयो का ज्ञान मिथ्या हो जायेगा ?
उत्तर-ठीक है भाई ! ऐसा कहा अवश्य था, पर उसका अभि
प्राय समझना चाहिये, शब्द नहीं । वहा भेद से तात्पर्य शब्दो मे दीखने वाला प्रादेशिक भेद है, भावात्मक भेद नहीं । जैसे कि 'कुण्डे मे दही' इस प्रकार द्रव्य मे गुण नही है, फिर भी 'द्रव्य मे गुण है' ऐसा कहा जाता है। 'दण्ड रखने वाला दण्डी' इस प्रकार गणादिक रखने वाला द्रव्य नहीं है, फिर भी वह गुणी पर्याय वाला कहा जाता है, । 'धन वाला धनवान' इस प्रकार गुण पर्यायवान द्रव्य नहीं है, फिर भी वह गुण पर्यायवान कहा जाता है । हाथ पैर आदि शरीर के अग है, इस प्रकार गुण पर्याय आदि द्रव्य के अग नही है, फिर भी द्रव्य को अगी कहा जाता है । तथा अन्य भी अनेको