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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५३३ १८. द्रव्यार्थिक के भेद
प्रभेदो का समन्वय द्रव्याथिक नय है। सामान्य का परिचय भी दो प्रकार से दिया जा सकता है-अभेद रूप से तथा भेद रूप से । विशेषों की सर्वथा अपेक्षा ही न करके केवल सामान्य धर्मात्मक ही वस्तु को बताना अभेद विवक्षा है, जैसे सन्मात्र द्रव्य कहना या चिन्मात्र जीव कहना । यही शुद्ध द्रव्यार्थिक का लक्षण है । वस्तु में सामान्य व विशेष का भेद करके विशष को लक्षण बना कर गौण करना और सामान्य को विशेष्य बना कर मुख्य करना भेद विवक्षा है। अर्थात विशेषो से विशिष्ट सामान्य को दर्शाना भेद विवक्षा है । जैसे गुण पर्याय वाला द्रव्य है या ज्ञान दर्शन वाला जीव है ऐसा कहना । यही अशुद्ध द्रव्यार्थिक का लक्षण है ।
उदाहरणार्थ ज्ञानादि गुणों व मनष्यादि पर्यायो मे अनुगत निर्विकल्प त्रिकाली जीव सामान्य द्रब्यार्थिक नय का विषय है । उसमे से जीव को चिन्मात्र कहकर सन्तुष्ट हो जाना शुद्ध द्रब्यार्थिक नय का विषय है, और उसे ज्ञानादि गुणो व मनुष्यादि पर्यायो का समूह या अधिष्ठान बताकर उसका विशेष स्पष्ट परिचय देना अशुद्ध द्रब्यार्थिक नय का विषय है । यही तीनों मे अन्तर है ।
२ प्रश्न -द्रब्यार्थिक का लक्षण तो केवल अभेद सामान्य को
ग्रहण करना है, फिर इस नय के शुद्ध अशुद्ध आदि अनेक भेद होने कैसे सम्भव है ?
उत्तर-उसी अभेद ग्राही द्रब्यार्थिक के विषय को स्पष्ट रीतयः
दर्शाने के लिये।