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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५३२
१८. द्रव्यार्थिक के भेद
प्रभेदो का समन्वय १ वृ न. च. ।१९४ "भावान्रागादीन्सर्वावे यस्तु जल्पति । स
हि अशुद्धोउक्त कर्मणामुपाधि सापेक्ष. १९४।"
अर्थ--- जो सर्व ही जीवो मे रागादि भावो को ग्रहण करता है,
वह कर्मोपाधि सापेक्ष अश द्ध द्रव्याथिक नय है ।
२. पा पा७७० "कर्मोपाधिसापेक्षोऽश द्ध द्रव्याथिको यथा
क्रोधादिकर्मजभाव आत्मा ।"
अर्थ- कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिक नय ऐसा है जैसे कि
आत्मा को क्रोधादि कर्मज भावस्वरूप कहना । कर्मोपाधि सहित जीव को देखने के कारण कर्मोपाधि सापेक्ष है, जीवकी अशुद्धता का प्रतिपादन करने के कारण अशुद्ध है, और कालकृत भेद न करके जीव सामान्य को अश द्ध रूपेण ग्रहण करने के कारण द्रव्याथिक है । अत "कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथि नय” ऐसा इसका नाम सार्थक है । यह तो इस नय का कारण है और सदा शिव पने की कल्पना का निरास करके, वर्तमान की इस अशुद्धता को दर्शा कर, इसे दूर करने तथा शुद्ध स्वरूप मे स्थिति पाने का उपदेश दना इसका प्रयोजन है ।
१८, द्रव्यार्थिक के अनेक यहा इस विषय सम्बन्धी बहुत सी
भेदो का समन्वय शकाये उठ रही है, जिनका स्पष्टीकरण होना अत्यन्त आवश्यक है । सो ही नीचे किया जाता है। १. प्रश्न -सामान्य द्रव्याथिक, शुद्ध द्रव्याथिक अशुद्ध द्रव्यार्थिक
मे क्या अन्तर है ?
उत्तर -सामान्य विशेषात्मक वस्तु मे विशेष को गौण करके
सामान्य का ही मुख्य रूपेण परिचय देने वाला सामान्य