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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य
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१७. कर्मोपाधि सापेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय
२. या प. । ७ पृ.६९ "कर्मों पाधिनिरपेक्ष : शुद्ध द्रव्यार्थिक को यथा ससारी जीव सिद्धसक शुद्धात्मा }"
अर्थ:-- कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय ऐसा है, जैसे कि संसारी जीव को सिद्ध के सद्दश्य शुद्धात्मा कहना ।
३ नि सा । ता वृ । १०७ कर्मोपाधि निरपेक्ष सत्ताग्राहक शुद्ध निश्चयद्रव्यार्थिं कनयापेक्षया हि एमिनकर्मभिर्द्रव्यकर्मभिश्च निम्मुक्तम् ।”
अर्थ -- कर्मोपाधि निरपेक्ष सत्ताग्राहक शुद्ध निश्चय द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से जीव द्रव्य इन तो कर्मों व द्रव्य कर्मों से निर्मुक्त है ।
शरीर या कर्मो की तथा उपलक्षण से क्षेत्र धनादि की उपाधि को दूर करने के कारण यह कर्मोपधि निरपेक्ष है, और क्षायिक भाव रूप उसकी शुद्धता को ग्रहण करने के कारण शुद्ध है । काल कृत भेद न करके जीव सामान्य मे ही उपरोक्त भाव ग्रहण करने के कारण द्रव्यार्थिक है | अत· 'कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रन्यार्थिक नय' ऐसा इसका नाम सार्थक है । यह इस नय का कारण है । संसारी जीव मे भी शुद्धता को दर्शाकर मोक्ष मार्ग के प्रति उत्साह प्रदान करना इसका प्रयोजन है ।
द्रव्यार्थिक नय दशक के इस अन्तिम युगल मे वद्ध वस्तु का १७ कर्मोंपाधि सापेक्ष स्वरूप दर्शाना इष्ट है । तहा पहिले कर्मोपाधि अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय निरपेक्ष नय के द्वारा समस्त सयोगो व तद्कृत विभावो को दृष्टि से ओझल करके वस्तु या जीव को क्षायिक भाव रूप शुद्ध देखा गया । अव इस दूसरे कर्मोपाधि सापेक्ष नय द्वारा उसी वस्तु या जीव को सयोगो तथा तद्कृत भावो से विशिष्ट, औदयिक भाव स्वरूप देखा जाता है ।