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________________ १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५२६ वत् शुद्ध देखा जा सकता है । शरीर और नाम रूप कर्मों आदि को यदि दृष्टि से ओझल कर दिया जाये तो वही संसारी जीव किमात्मक दृष्ट होगा ? क्या उसका अभाव दिखाई देगा ? नही पर चतुष्टय स्वरूप सयोगी पदार्थों का तथा रागादि सयोगी भावो का अभाव होने पर भी वस्तु के स्व चतुष्टय का तीन काल मे अभाव होना सम्भव नही है | शरीरादि को जला देने पर भी स्वचतुष्टय से तन्मय जीव द्रव्य की सत्ता अवश्य रहती है। यह सत्ता किमात्मक दिखाई देगी? स्पष्ट है कि शरीरादि तथा रागादि को दृष्टि से दूर करके देखे तो जीव मुक्त वत् शुद्ध दिखाई देगा । बस यही इस कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का विषय है । अर्थात कर्मो आदि पर पदार्थो के संयोग का निरास करके सर्व जीवों को मुक्त वत् देखना इस नय का लक्षण है । 1 १६. कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय यद्यपि यहा केवल जीव द्रव्य पर ही इस नय का प्रयोग करके दर्शाया है, पर पुद्गल द्रव्य पर भी समान रूप से इसका प्रयोग किया जा सकता है, जैसे कि स्थूल पदार्थो मे भी बन्ध विशेष को दृष्टि से ओझल करके शुद्ध परमाणुओ की पृथक पृथक शुद्ध सत्ता को देखा जा सकता है । अब इसी लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धरण देखिये | १ वृ न च ।१११ “कर्मणां मध्यगत जीव यो गृहणाति सिद्ध सकाशं । भण्य ते स शुद्ध नय खलु कर्मोंपाधिनिरपेक्षः । १९१।” अर्थ - कर्मों के मध्यगत ससारी जीव को जो नय सिद्ध जीवों के सदृश्य ग्रहण करता है उसे कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहते हैं ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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