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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५२५
इन सर्व' भेदों के साथ वस्तु स्वभाव का अनुगताकार सम्बन्ध दर्शाया गया है । अर्थात् पूर्व य विविक्तता दर्शाता था और यह नय अन्वय या अनुगताकारिता दर्शाता है । यही दोनो मे अन्तर है । वास्तव मे यह वस्तु को अनेक दृष्टियों से पढने का अभ्यास कराया जा रहा है ताकि आगे जाकर इन सर्व मे से किसी एक दृष्टि विशेष का आश्रय करके इष्ट साधना सम्भव हो सके ।
१५. अन्वय ग्राहक अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय
अब इसी लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धरण देखिये ।
१ वृ. न च। १९७ “नि शेषस्वभावाना अन्वयरूपेण सर्वद्रव्यै । विभावनामिः यः सोऽन्वयद्रव्यार्थिको भणितः । १९७ ।”
अर्थ – सम्पूर्ण स्वभावो का अपने द्रव्यो के साथ अथवा विभावो के साथ ज़ो अन्वयरूपसे रहना देखता है, वह अन्वय दब्या - र्थिक नय कहा गया है ।
२ आ. प. ।७। पृ ७१ “अन्वय द्रव्यार्थिको यथा गुणपर्यायस्वभावद्रव्यम् ।”
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अर्थ - अन्वय द्रव्यार्थिक ऐसा है, जैसे कि गुण पर्याय स्वभावी ही द्रव्य है ।
३ आ प.।१५।पृ१०७ “ अन्वयद्रव्यार्थिक नये नैकस्याप्यनेक द्रव्यस्भावत्व ।”
अर्थः-- अन्वय द्रव्यार्थिक नय से एक के भी ( उस अखण्ड एक पारिणामिक भाव के भी ) अनेक द्रव्य स्वभाविपना है ।
४ प १७ १२१ सामान्यगुणादयोऽन्वरूपेण द्रव्यं द्रव्यमिति द्रवति व्यवस्थापयतीत्यन्वयद्रव्यार्थिकः । "