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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६१ ६ अशुद्र द्रव्यार्थिक
नय प्रयोजन उसी वस्तु का बाह्य रूप दर्शाना है। अतः यह दोनो नये एक ही अखण्ड द्रव्यार्थिक नय के दो भेद है, पृथक पृथक स्वतत्र कुछ नही है ।
शुद्धाशुद्ध से निरपेक्ष शुद्धता दशनि के कारण तथा गुण गुणी आदि मे अभेद दश नि के कारण यह शुद्ध है। तथा द्रव्य के सामान्य पडखे को दश नेि के कारण द्रव्यार्थिक है । यही इस नय का यह नाम रखने का कारण है । और वस्तु के अन्तरंग रूप अर्थात परिणामिक भाव की ओर तथा निर्विकल्प अभेद की ओर श्रोता का लक्ष्य खेचना इस नय का प्रयोजन है । या गे कहिये कि व्यक्ति मे निज वैभव देखने की या वस्तु मे द्वैत देखने की जो टेव श्रोता को पड़ी हुई है उसका निरास करके उसका लक्ष्य शक्ति पर ले जा कर उसे वस्तु की अद्वैतता का परिचय दिलाना इसका प्रयोजन है ।
शुद्ध द्रव्याथिक नय की भूमिका में यह बताया था कि वस्तु का ६. अशुध्द द्रव्यार्थिक सामान्य रूप दो प्रकार से देखा जा सकता
नय है-विशेष निरपेक्ष और विशेष सापेक्ष । तहा विशेष निरपेक्ष सामान्य पदार्थ की सत्ता को देखना शुद्ध द्रव्याथिक नय है, जिसका कथन किया जा चुका है । विशेष सापेक्ष सामान्य पदार्थ की सत्ता को देखना उसी द्रव्यायिक की अशुद्ध प्रकृति है। अर्यात सामान्य पदार्थ मे गुण गुणी आदि का भेद डालकर उस का कथन करना अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहलाता है।
इस नय का लक्षण शुद्ध द्रव्यार्थिक के लक्षण से बिल्कुल उल्टा है, जैसे कि द्रव्य की अपेक्षा करने पर, जहा शुद्ध द्रव्यार्थिक नय गुण, पर्याय आदि से निरपेक्ष एक निर्विकल्प अनिर्वचनीय तत्व को ही द्रव्य कहता था, वहा अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय उसे ही उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्त अथवा गुण पर्याय वान कहता है । क्षेत्र की अपेक्षा करने पर, जहाँ शुद्ध द्रव्यार्थिक उसे प्रदेश कल्पना' से निरपेक्ष सर्वव्यापी या निज एक