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________________ १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४८९ ५. शुब्द द्रव्यार्थिक नय जाता रहा है । उपरोक्त सर्व उदाहरणो मे यही कहा गया है, और आगे भी जहा जहां यह प्रकरण आयेगा, ऐसा ही कहा जाता रहेगा। वहा भावार्थ ठीक ठीक समझ लेना । यद्यपि द्रव्य उत्पाद व्यय या पर्यायों से रहित कभी नही रह सकता । क्योंकि उत्पाद उसका स्वभाव है, और गुणों व पर्यायो का समूह उसका स्वरूप व सर्वस्व है । परन्तु देखने का ढंग है। पर्यायों व उत्पाद व्यय सहित को भी पर्यायों व उत्पाद व्यय से रहित देखा जा सकता है। यही बात उपरोक्त उदाहरणों पर से सिद्ध की गई है। प्रत्येक वस्तु के दो पड़खे या दो पहलू होते है, एक उसका वाह्य रूप ओर एक उसका अन्तरग रूप । बाहर से देखने पर वस्तु के रूप बरावर बदलते हुए दिखाई देते है, जिसके कारण उसकी जाति मे भी भेद पड़ता दिखाई पड़ता है । परन्तु वस्तु के अन्दर यदि दृष्टि को ले जाकर देखे तो वस्तु या उसकी जाति मे कोई परिवर्तन दिखाई न दे सकेगा। जैसे सागर का एक तो बाह्य रूप है, और एक अन्दर का वह रूप जो उसकी थाह में पड़ा है। ऊपर से देखने पर वह कल्लोलित दिखाई देता है, जवार भाटे रूप दिखाई देता है, तूफान वाला दिखाई देता है, प्रवाहित दिखाई देता है, जिस प्रवाह व तूफान के कारण कि बड़े बड़े जहाज तक उलट जाते है । यह कल्लोले, जवार भाट, तूफान व प्रवाह वहा न हों ऐसा नहीं है । वह वहा है ही है । वहाँ सत्य रूप है कल्पित नही। परन्तु उसके अन्दर जाकर देखे तो न कल्लोले है, न जवार भाटे हैं, न तूफान है, न प्रवाह है । जहा जो पानी है सदा से वही है और वही रहेगा । छोटे छोटे जन्तु भी वहा आराम से रहतं है। बाधा का प्रश्न नहीं सागर का यह रूप भी वहा है ही है । यह भी सत्य है कल्पित नही । यद्यपि कुछ विरोध सा दीखता है और प्रश्न उठाता है कि दो विरोधी बाते एक ही स्थान पर कैसे रह
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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