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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४८८
५. शुध्द द्रव्यार्थिक
नय का अधिक, परन्तु दीपक के प्रकाश में प्रकाश पना कुछ कम है और बिजली के प्रकाश मे कुछ अधिक यह बात घटित नही हो सकती। जेसेकि एक अगूर के स्वाद मे तृप्ति कुछ कम है और एक सेर भर अगूरो के स्वाद मे तृप्ति अधिक है, पर दोनो के स्वाद की जाति मे कोई भेद नही कहा जा सकता। अतः कम प्रकाश व अधिक प्रकाश या पीला प्रकाश व सफेद प्रकाश होते हुए भी प्रकाश पने की जाति मै अन्तर पडा नही कहा जा सकता।
इसी प्रकार जीव की पर्याय ससारी हो या मुक्त, अशुद्ध हो कि शुद्ध, उसमे जीव पने की जाती मे कोई भेद पड़ा नही कहा जा सकता । सिद्ध जीव का जीवत्व किसी ओर प्रकार का और ससारी का किसी और प्रकार का, ऐसा नही हो सकता । जीवत्व तो जीवत्व है, उसका क्या ससारो पना और क्या मुक्त पना । जैसे ज्ञान तो ज्ञान है, अल्प हो कि अधिक, निगोदिया का तुच्छ ज्ञान हो या हो केवल ज्ञान, ज्ञान पने मे क्या हीनाधिकता । जिस जाति का पदार्थ प्रकाशन स्वरूप ज्ञान निगोद मे है वैसा ही केवली मे है । दोनो की जाति मे कोई अन्तर नही । और यदि ऐसा ही है तो जीव पने का उत्पाद व्यय भी क्या ।
__ बस इसी प्रकार चेतन या अचेतन किसी भी पदार्थ का पदार्थ पना या वह वह जाति पना तो वह वह रूप ही है, उसमे तो हीनाधिकता आदि का प्रश्न हो नही सकता । इसलिये इस का जन्म व मरण या उत्पाद व व्यय भी क्या ? होता ही नहीं । होना शब्द ही घटित होता नही, क्योकि उसकी वहा अपेक्षा ही नही । जब उत्पाद व्यय ही घटित होते नही तो पर्याय कैसे धटित हो सकती है, और पर्यायो के अभाव मे शुद्ध और अशुद्ध कैसे कह सकते है । अत. शुद्ध द्रव्याथिक नय का विषय जो पारिणामिक भाव उसे सर्वत्र उत्पाद व्यय से निरपेक्ष, पर्याय कलको से रहित, शुद्धाशुद्ध कल्पनाओं से अतीत ही कहा