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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४८७
५. शुध्द द्रव्यार्थिक
नय ४. क्षायिक भाव की शुद्धता और उसकी शुद्धता मे महान अन्तर है।
५. उसमे शुद्ध व अशुद्धि की अपेक्षा ही पड़ नहीं सकती।
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अर्थ - शुद्ध निश्य नय से तो मोक्ष मार्ग कोई चीज ही नही
है। क्योकि जो शुद्ध द्रव्य शक्ति रूप' शुद्ध पारणामिकपरम भाव लक्षण वाली, परम निश्चय मोक्ष या त्रिकाली शुद्धता है, वह तो जीव मे पहिले से है हो है । तो वह भविष्यत मे प्राप्त होगी ऐसा प्रश्न ही नही
हो सकता ।) यह तो आगम कथित उदाहरण है, अब अपना उदाहरण सुनिये, जिस पर से कि इन सब उपरोक्त उदाहरणों का अर्थ स्पष्ट हो जायेगा तथा जिसमे इस नय के कारण व प्रयोजन का भी अन्तर्भाव हो जायेगा । देखिये आपके कमरे मे एक ओरदीपक टिम टिमा रहा है, एक ओर बिजली जलती है और एक ओर से सडक का प्रकाश आ रहा है। कमरा प्रकाशित है । आप वहा बैठेपढ रहे है । आप की पुस्तक पर जो प्रकाश पड़ रहा है उस पर बताईये, दीपक की मोहर लगी हुई है, या बिजली की या आकाश की? वह तो प्रकाश है । जैसा दीपक मे वैसा ही बिजली मे, और वैसा ही आकाश मे । प्रश्न हो सकता है कि तोनो प्रकाश की जाति में तो भिन्नता है। ठीक है जाति मे भिन्नता अवश्य है पर पढने में सहायक बनने के लिये तीनो मे क्या विशेषता है । क्या दीपक के प्रकाश मे बैठ कर आप पढ न सकेगे, शर्त यह कि आपके अपने नेत्र ठीक होने चाहिये।
इन तीनो मे प्रकाश पना एक ही जाती का है प्रकाश पने मे तीन पना हो ही नहीं सकता। दीपक का प्रकाश अल्प है और बजली