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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य
नय
नोट -- क्षेत्र की प्रमुखता से आगम मे कथन साधारणत नही किया जाता, क्योकि उसका अन्तर भाव द्रव्य वाली अपेक्षा मे ही हो जाता है, कारण कि गुणो आदि का आधार होने के कारण प्रदेशो को ही द्रव्य कहा जाता है । परन्तु पाठको को अनुक् भी यह अपेक्षा अपनी बुद्धि से यथा योग्य रूप से लागू कर लेनी चाहिये ।
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५. शुध्दद्रव्यार्थिक
३ लक्षण नं० ३ ( पर्याय परिवर्तन निरपेक्ष त्रिकाली सत्ता )
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१. क० पा०।१।१८२ २१९ “ शुद्धद्रव्यार्थिकः पर्यायकलकरहित वहुभेद संग्रह ।"
अर्थ -- जो पर्याय कलक से रहित होता हुआ अनेक भेद रूप संग्रह नय है वह शुद्ध द्रव्याथिक है । अर्थात सर्व पर्याय का संग्रह करके द्रव्य को एक अखण्ड रूप प्रदान करने वाला शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है ।
२ पका ।ता वृ।११।२७ " अनादिधिनस्य द्रव्यस्य द्रव्यार्थिकनयेनोत्पत्तिश्च विनाशो वा नास्ति ।"
अर्थ - - द्रव्यार्थिक नय से अनादिनिधन द्रव्य की न और न विनाश ।
४ लक्षण न० ४ ( भाव की अपेक्षा स्वलक्षणभूत शुद्ध स्वभावी हैं)
१. श्रा. प ।१५। वृ १११ " शुद्धद्रव्याथि कनयेन शुद्धस्वभाव ।”
अर्थः = - शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से तत्व शुद्ध स्वभावी है ।
उत्पत्ति है