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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४८१
५. शुध्द द्रव्यार्थिक
नय अर्थ-"तत्व अनिर्वचनीय है" ऐसा कहना शुद्ध द्रव्यार्थिक नय
का पक्ष है । तथा "गुण पर्याय वाला द्रव्य है" ऐसा पर्यायार्थिक नय का पक्ष है १७४७। 'अखण्ड रूप होने के कारण न द्रव्य है", तथा न गुण है, तथा न पर्याय है, तथा न वह वस्तु किसी विकल्प से व्यक्त ही हो सकती है, ऐसा शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का मत है ।
६. पं. ध. उ०।३३।१३३ “अथ शुद्धनयादेशाच्छद्धश्चैक विधोऽ
पिय. । स्याद्विधा सोपि पर्यायान्मुक्तामुक्त प्रभेदत ।३३। जीवः शुद्धनयादेशादस्ति शुद्धोपितत्वतः ११३३।"
अथां----शुद्ध नय की अपेक्षा से जो जीव शुद्ध तथा एक
प्रकार का है । वही जीव पर्यायाथिक नय की अपेक्षा से मुक्त और संसारी जीव के भेद से दो प्रकार का भी है ।३३। वास्तव मे यहा शुद्ध नय की अपेक्षा से जीव शुद्ध भी है ।१३३।
प.ध. ।पू० २१६ “यदि वा शुद्धत्वनयात्राप्युत्पादो व्ययोपि न
ध्रौव्यम् । गुणश्च पर्यय इति वा न स्याच्च केवलं सदिति ।२१६।"
अर्थ--अथवा शुद्धता को विषय करने वाले नय की अपेक्षा
न उत्पाद है, न व्यय है और न ध्रौव्य है । इसी प्रकार न गुण है और न पर्याय है । केवल एक सत् ही है।
(प. प. पू.। २४७, ७४७)
२ लक्षण नं. २ (क्षेत्र की अपेक्षा अखण्ड है) -
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