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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य
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२ द्रव्यार्थिक नय सानान्य के लक्षण
११ त अनु।२६ “अभिन्नक कर्मादिविषयो निश्चयोः नयः ।” अर्थ --जिसमे को कर्म आदि सब विषय अभिन्न हो वह
निश्चय है। (अन ध. ॥१११०२।१०८)
१२. प. ध ।पू० ६५ "द्रव्यादेशादवस्थित वस्तु ।"
अर्थ-वस्तु द्रव्याथिक नय की अपेक्षा से अवस्थित है ।
१३ प ध पू० १६१४ 'लक्षमेकस्य सतो यथाकथचिद्यथा
द्विवाकरणम् । व्यवहारस्य तथा स्यात्तदितरथा निश्चयस्य पुन १६१४।"
अर्थ---जिस प्रकार एक सत् को जो किसी प्रकार से दो रूप
करना व्यवहार का लक्षण है, उसी प्रकार उस व्यवहार नय से विपरीत अर्थ एक सत् को दो रूप न करना निश्चयनयका लक्षण है।
१४ स पा० १६ मे प० जयचन्द “जीव को एक नित्यादि कहना
द्रव्याथिक का विषय है ।"
४ लक्षण नं०४ (अवक्तव्य है) --
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१ प ० ध पू० ।६२६ 'स्वयमपि भूतार्थत्वाद्भवति स निश्चय
नयो हि सम्यक्त्वम् । अविकल्पवदतिवागिव स्यादनुभवै
कगम्यवाच्यार्थ ।६२९।" अर्थ-स्वय ही यथार्थ अर्थ को विषय करने वाला होने के कारण
निश्चय से वह निश्चय नय सम्यक्त्व है । बहुरि वह