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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४५८
२. द्रव्यार्थिक नय
सामान्य के लक्षण अनेक विशेष भावो का पिण्ड कोई एक अखण्ड भाव सामान्य है, अथवा एक अविभाग प्रतिच्छेद तो विशेष भाव है और अनेक विशेप भावो मे अनुगत एक अखण्ड भाव सामान्य है। सामान्य चतुष्टय स्वरूप तत्व सामान्य तत्व कहलाता है और विशेप चतुष्ट स्वरूप तत्व विशेष तत्व कहलाता है । सामान्य और विशेप के मध्य तत्व के अनेको अवान्तर भेद प्रभेद देखे जा सकते है। इस सर्व कथन का विशेष विस्तार वहा अधिकार न० ६ मे देखे ।
तहा सामान्य चतुष्टयात्मक तत्व की ही सत्ता को स्वीकार करके विशेष तत्व की सत्ता का तिरस्कार करना द्रव्याथिक नय है और विशेष तत्व की सत्ता को ही स्वीकार करके सामान्य तत्व की सत्ता का तिरस्कार करना पर्यायाथिक नय है । यही इस वस्तुभूत अर्थ नय के मूल दो भेद है, जिनके आगे १६ भेद कर दिये गये हैदस भेद द्रव्यार्थिक नय के और छ: भेद पर्यायाथिक नय के । इन १६ भेदों का कथन ही इस श्रेणी में किया जायगा । इन मे भी पहिले द्रव्याथिक नय तथा उसके सामान्य व विशेष भेदों का कथन करना इष्ट है ।
उपरोक्त सकेत पर से यह बात जानी गई है कि सामान्य तत्व २ द्रव्याथिक की सत्ता को अर्थात् महा सत्ता व अवान्तर सत्ता नय सामान्य की भूतपूर्व कथित पदार्थो की एकता को स्वीकार
के लक्षण करके विशेष तत्व की उनकी अनेकता का तिरस्कार करना द्रव्याथिक नय का विषय है । इसी बात का विशेष स्पष्टीकरण करते है । यद्यपि सामान्य तत्व तो चतुष्टयात्मक है, ओर इस लिये चारो (द्रव्य क्षेत्र काल व भाव) के आधार पर ही उसकी सामान्यता को ग्रहण किया जाना चाहिये, परन्तु यहा कथन क्रम को सरल बनाने के लिये उनमे से किसी भी एक या दो के आधार पर अपना अभिप्राय समझना पर्याप्त है । तहा शेष मे भी वही अभिप्राय स्वय अपनी बुद्धि से लगा लेना।