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१६. द्रव्यार्थिक लय सामान्य
२. द्रव्यार्थिक नय
सामान्य के लक्षण __ अधिकार न० ६ मे वस्तु के सामान्य व विशेष का परिचय देने के लिये जीरे के पानी का दृष्टात दिया गया है । तहा नमक मिर्च आदि तो विशेष है और उस पानी का मिश्रित एक रसरूप विजातीय स्वाद सामान्य है । दाष्टन्ति मे ज्ञान, श्रद्धा, चरित्रादि अनेक गुण या स्वभाव, तथा मतिज्ञान आदि अनेकों अर्थ पर्याये, अथवा देव मनुष्यादि अनेको व्यञ्जन पर्याये या स्वकाल, तो विशेष है और उन सब मे अनुस्यूत एक आत्मा नाम पदार्थ सामान्य है । सामान्य का नाम द्रव्य है जो सर्व गुणों व त्रिकाली पर्यायों का एक रसात्मक अखंड पिण्ड है, और इसके विशेष ही पर्याय शब्द के वाच्य है। इस पर्यायो को गौण करके या भूलकर केवल उस सामान्य द्रव्य को ही सत् रूप स्वीकार करना द्रव्यायिक दृष्टि है ।
___ जीरे के पानी को चखते समय जिस प्रकार केवल एक अखण्ड स्वाद हो चखने में आता है, नमक मिर्च आदि का पृथक पृथक स्वाद उस समय कोई चीज नहीं है, इसी प्रकार सामान्य द्रव्य से रहित पृथक पृथक गुण या पर्याय की सत्ता है ही कहा। गुण व पर्याय ही तो मिलकर द्रव्य कहलाते है और द्रव्य गुण पर्याय मयी है, अत. द्रव्य, गुण व पर्याय या द्रव्य क्षेत्र काल व भाव ऐसा द्वैत कहकर वस्तु की सत्ता को विनष्ट क्यो करते है उसे अकेला द्रव्य या वस्तु ही रहने दीजिये । वस्तु मे इस प्रकार का अद्वैत देखना ही इस दृष्टि का विषय है।
इसी भाव को और अधिक स्पष्ट करने के लिये अधिकार न० १० मे प्रकरण न० ३ के अन्तर्गत वह जीरे के पानी वाला दृष्टान्त एक बार देख लीजिये । प्रश्नोत्तर के फलस्वरूप वहा चार बाते सामने आई थी--
१ -अभेद विजाति प्रकार का स्वाद है ।