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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४५७
१. षोडश नय प्रकरण
परिचय विश्लेषण करता हुआ, उसे स्थूल से सूक्ष्म और फिर सूक्ष्म से भी
सूक्ष्मतर व सूक्ष्म तम अवस्था तक पहुँचा कर दर्शा देता है। वस्तुभूत ' आगम नये ज्ञान व शब्द को छोड कर केवल अर्थ मे प्रवृत्त होते है। इसमे तत्व की स्थूलता व सूक्ष्मता की कोई अपेक्षा नहीं है । यहां तो वस्तु के सामान्य व विशेष अशो का अत्यन्त विशद परिचय देना इष्ट है।
अधिकार न० ६ मे वस्तु के अशों का व उनके सामान्य विशेष विकल्पो का परिचय दिया गया है। यद्यपि अब तक के सारे कथन का आधार भी वही रहा है, परन्तु नया प्रकरण प्रारम्भ करने से पहिले यहा पुनः उसका सक्षिप्त सा परिचय दे देना योग्य है, क्योकि वस्तु के सामान्य व विशेष ये अग ही इन नयो के प्राण है । वस्तु अनेक नित्य व अनित्य अगो का पिण्ड है। नित्य अगो को गुण और अनित्य को पर्याय कहते है । गुणो व पर्यायो के प्रदेशात्मक अधिष्टान को द्रव्य कहते है। द्रव्य तो द्रव्य है, उसके प्रदेश उसका क्षेत्र है, उसकी पर्याय ही उसका काल है, और गुण उसके भाव है। इस प्रकार सर्व ही अग द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव इन चार विकल्पो मे समा जाते है । ये चारो वस्तु के स्वचतुष्टय कहलाते है । वस्तु इस चतुष्टय से गुम्फित है। चार में से एक का भी अभाव होने पर वस्तु की महासत्ता या अवान्तर सत्ता सुरक्षित नहीं रह सकती।
__ये चारो ही सामान्य तथा विशेष के रूप में देखे जा सकते है । जैसे कि एक व्यक्तिगत कोई द्रव्य तो विशेष है और अनेक ऐसे विशेष द्रव्यो मे अनुगत एक जाति को सामान्य द्रव्य कहते है, एक प्रदेश तो विशेष क्षेत्र है और अनेक विशेष क्षेत्रो मे अनुगत द्रव्य का एक अखण्ड सस्थान सामान्य क्षेत्र है। इसी प्रकार एक समय' स्थायी पर्याय तो विशेषकाल है और अनेक विशेष कालो मे अनुगत वस्तु की त्रिकाली सत्ता सामान्य काल है, एक गुण तो विशेष भाव है और