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१५ शब्दादि तीन नय ४४६ १२ तीनो का समन्वय (1) ऋजुसूत्र का विषय अर्थ व शब्द दोनो पर्याय है, परन्तु शब्द
नय का विषय केवल शब्द पर्याय है, अतः उसकी अपेक्षा स्वल्प विषय वाला है।
(1) ऋजुसूत्र नय अर्थ प्रधान है और शब्द नय शब्द प्रधान है
अर्थात ऋजुसूत्र तो प्रमुखतः पर्याय को ही सूक्ष्म दृष्टि से जानने में प्रवृत होता है और शब्द नय उस ही पर्याय का सज्ञा करण करने मे । इसका यह अर्थ न समझना कि ऋजुसूत्र नय विल्कुल गूगा है और शब्द नय अन्धा । यहाँ केवल प्रमुखता की बात है ।।
(ii) ऋजुसूत्र भी अपने विषय भूत पर्याय का प्रतिपादन करता
अवश्य है पर शव्द गम्य व वाक्य गम्य दोपो की पर्वाह न करता हुआ । शब्द नय भी उसके विषय को जानकर या ग्रहण करके उसका प्रतिपादन करतााहै, पर शब्द गम्य दोपो को दूर करके । ऋजुसूत्र तो लौकिक व्याकरण के नियमो का अनुसरण करता हुआ उसके द्वारा स्वीकृत सर्व अपवादो को स्वीकार कर लेता है, पर शव्द नय व्यवहार के लोप की परवाह न करता हुआ किसी प्रकार के भी शब्द गम्य अपवाद को स्वीकार नही करता । अर्थात ऋजुसूत्र के वक्तव्य मे भिन्न लिङ्ग व सख्या आदि के वाचक पर्याय वाची शब्दो का अर्थ एक समझा जा सकता है पर शब्द नय के वक्तव्य मे ऐसा नही हो सकता । वह समान लिग आदि के वाचक पर्याय वाची शब्दो मे ही एकार्थता स्वीकार करता है पर भिन्न लिगादि वालों मे नही।
( iv) अत विषय भूत पदार्थ की अपेक्षा तो इन दोनो मे कोई
अन्तर नही, वह भी पर्याय को विषय करता है और यह