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१५. शब्दादि तीन नय
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१२. तीनो का समन्वय
सकता । यदृच्छा से कभी इन्द्र को 'इन्द्र' और 'पुरन्दर' कह देने से भी श्रोता को उस समय वह शब्द सुन कर भ्रम हो सकता है कि सम्भवत. इस समय इन्द्र के सम्बन्ध में कहा जा रहा है, वह नगर विदारण करता हुआ फिर रहा है, भले ही उस समय वह भगवान की पूजा ही कर रहा हो। इस प्रकार के भ्रम की सम्भावना को दूर करके समभिरूढ के विषय को और भी सूक्ष्म व शुद्ध बनादेना इस नय का प्रयोजन है।
१२ तीनो का सामन्य
अब इन तीनो के विषय मे उठने वाली कुछ शकाओ का सामाधान कर लेना योग्य है ।
१ प्रश्न --ऋजुसूत्र नय व शब्द नय मे क्या अन्तर है ?
उत्तर-इन दोनो मे सर्वथा भेद हो ऐसा नहीं है, किन्ही
अपेक्षाऔ से इनमे अभेद भी है और किन्ही अपेक्षाओ से भेद भी।
(i) ऋजसूत्र नय का विषय भी एक समयवर्ती पर्याय है ओर
शब्द नय का विषय भी। वहा भी एकत्व का ग्रहण है और यहा भी।
(ii) ऋजुसूत्र नय भी किसी वस्तु को जिस किस नाम से कह
देता है और शब्द नय भी । दोनो मे वाचक शब्दो सम्बन्धी विवेक का अभाव है।
(ii) ऋजसूत्र भी अनेको अन्वर्थक व काल्पनिक शब्दो को
एकार्थ वाची स्वीकार करता है और शब्द नय भी।
इस प्रकार तो इन दोनो मे अभेद है, अव भेद देखिये।