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१५ शव्दादि तीन नय
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६. समभिरूड नय के
कारण व प्रयोजन कहलाता है । यथा-आप कहां से आ रहे है ? अपने में से । क्योकि अन्य वस्तु की अन्यवस्तु में वृत्ति नहीं हो सकती । यदि अन्य की अन्य मे वृत्ति होती है ऐसा माना जाय तो ज्ञानादिक की और रूपादिक की आकाग में वृत्ति होने लगे।
(रा वा ११३३ ।१०।६६ २)
२ धपु० ११ ८६ ५ "न पर्यायशन्दाः सन्ति भिन्नपदानामेकार्थ
वृत्ति विरोधात् । नाविरोधः पदानामेकत्वापत्तेरिति ।" । अर्थः--इस नय की दृष्टि मे पर्याय वाची शब्द नहीं होते हैं,
क्योकि भिन्न पदों का एक पदार्थ में रहना स्वीकार कर लेने में विरोध आता है। यदि भिन्न पदो की एक पदार्य मे वृत्ति हो सकती है इसमे कोई विरोध नहीं है, ऐसा मान लिया जावे तो समस्त पदों को एकत्व की आपत्ति आ जावेगी।"
शंका -यहा यह शका हो जानी सम्भव है कि शन्द वस्तु का
धर्म नहीं है, क्योकि उसका वस्तु से भेद है । सो ऐसे कि
१. वस्तु वाच्य है और शन्द वाचक । २. वस्तु भिन्न इन्द्रियो से ग्राह्य है और शब्द भिन्न इन्द्रियो
से।
३. वस्तु के कारण भिन्न हैं और शब्द के कारण भिन्न है।
४. वस्तु की अर्थ क्रिया भिन्न हाऔर शब्द की अयं क्रिया
भिन्न है।