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२. शब्द व ज्ञान सम्बन्ध २३
३. प्रतिबिम्ब व चित्रण तो बताइये आपने क्या जाना ? यह तो आपके नेत्र मे विकार है, आप को पीला भी हरा दिखाई देता है और या आपने इसे देखा ही नही, केवल कल्पना से अधो को भांति यू ही बता रहे हो। ज्ञान तो इसे पीला ही देख सकता था अन्य रूप वह देख सके ऐसा संभवही नहीं है। बस इसी प्रकार वस्तु को देखे बिना जो कोई भी बात उसके सबध मे कहना परोक्ष ज्ञान नही कहलाता । वह तो प्रत्यक्षवत् होता है । किसी वस्तु का चित्रण सामने दीवार पर खेचने के दो उपाय है । या तो दीवार पर वस्तु के सामने एक दर्पण लटका दे या उस वस्तु के रूप की ड्राइग या पेन्टिग वहा कर दे । तीसरा तो कोई उपाय नही । दर्पण मे तो सहज ही उस वस्तु का चित्रण आ जाता है, पर ड्राइग करने के लिये तो बहुत देर लगेगी । एक एक लकीर खेचखेचकर उसे बताना होगा दर्पण का चित्रण प्रतिबिब कहलाता है पर ड्राइग को प्रतिबिब नही कह सकते, इसे चित्र ही कहेंगे । प्रतिबिब से हीनाधिक होना असभव है पर चित्र मे यदि मैं चाहूँ तो हीनाधिकता कर सकता हूँ। पर यदि ऐसा कर दू तो क्या चित्र सच्चा कहलायेगा ? नही । देखो यह पुस्तक है । दर्पण के सामने ले जाता हूँ। देखिये सामने दर्पण मे । क्या एक भी अक्षर वहां प्रतिबिब मे कम या अधिक हो पाया है ? नही । जैसा कुछ यहा लिखा है वैसा व उतना ही वहां आया है। यदि में इस पुस्तक के इस पृष्ठ का चित्रण खीचने लगे तो सभव है कि गलती से कोई एक शब्द उसमे कम लिख पाऊँ , परन्तु यदि ऐसा हो गया तो क्या उस चित्रण को इस पृष्ठ के अनुरूप कहा जा सकेगा ? नही। .
प्रतिबिम्ब व चित्रण दोनो मे महान अन्तर है । प्रतिबिम्ब सच्चा ही होता है पर चित्रण झूठा व कल्पित भी हो सकता है । प्रतिबिम्ब सहज होता है और चित्रण कृत्रिम होता है । प्रतिबिम्ब पडने मे देर नही लगती पर चित्रण बनाने मे देर लगती है । प्रतिबिम्ब मे कोई रेखा पहले आये और कोई पीछे, ऐसा क्रम नही होता पर चित्रण क्रम के बिना बनाया ही नहीं जा सकता। उसमे तो अनेको रेखायें