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२ शब्द वज्ञान सम्वन्ध
प्रत्यक्ष
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२ शब्द व ज्ञान सम्वन्ध २२२ प्रत्यक्ष व परोक्ष ज्ञान परन्तु प्रत्यक्ष के अनुरुप अवश्य होता है, और इसलिये परोक्ष ज्ञान सर्वथा झूठा हो ऐसा नहीं है । यह भी सच्चा व ठीक ही है।
जिस पदार्थ के सवध मे यह अध्यात्म विज्ञान हमे कुछ बताता है वह पदार्थ साधारणत. दृष्ट नहीं है, और इसीलिये उपरोक्त मार्ग ही पकड़ना पड़ेगा । अर्थात् पहले कुछ शब्दो व दृष्टान्तो के आधार पर उसका परोक्ष अनुमान कराया जाना ही संभव हो सकेगा । यह परोक्ष ज्ञान इतना ही कार्य कारी है कि कदाचित उस पदार्थ के सामने आने पर नि सदेह उसे पहिचान जाये, कि यही वह पदार्थ है जिसका परोक्षज्ञान कराया गया था, इससे अधिक कुछ नही । बिना प्रत्यक्ष किये तो परोक्ष ज्ञान सदा सशय के साथ ही वर्ता करता है, इसी लिये अध्यात्म ज्ञान अनुभवप्रधान बताया गया है । फिर भी परोक्ष ज्ञान प्रथम भूमिका मे अत्यन्त हितकारी व सच्चा है । शाब्दिक स्थूल सशय वहा नही रहता, केवल रसास्वादन सबधी ही रहता है, जिसका उपाय अनुभव के अतिरिक्त और कुछ नही । और अनुभव ऐसी चीज है कि प्रत्येक व्यक्ति अपना अपना कर तो सकता है पर दूसरे को दे व दिखा नही सकता । यही बडी कठिनाई है।
अब यह विचारना है कि परोक्ष ज्ञान कैसा होना चाहिये । ज्ञान ३. प्रतिविम्ब का काम वस्तु को जानना है। वस्तु जैसी है वैसी
व चित्रण की वैसी जानने को ज्ञान कहेगे या कुछ हीनाधिक या अन्य प्रकार जानने को ? सो यह कहने की आवश्यकता नहीं कि वस्तु जैसी है वैसी ही जानने को ज्ञान कह सकेगे । जामफल के ज्ञान को हम सेव का ज्ञान केसे कह सकते है ? भले ही दृष्टांत रूप से सेब को वताने के लिये उसको दर्शाया जाना अभीष्ट हो। दृष्टांत पर से दृष्टात को पकडे तभी वह परोक्ष ज्ञान सच्चे की कोटी को स्पर्श कर सकता है, दृष्टान्त या शब्द मे अटके तव नही।
देखो में यह घड़ी आपको दिखाकर पूछता हूँ कि भाई ! तुमने इसे जाना ? वताओ तो इसका रग कैसा है ? और आप कहे कि हरा,