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१५. शब्दादि तीन नय
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६. शब्द नय का लक्षण
कारक आदि के भेद से शब्द के वाच्यार्थ को भी सर्वथा अलग मानने को शब्द नय कहता है । क्योकि ऐसा मानना तो शब्दाभास स्वीकार किया गया है । जैसे सुमेरू था, सुमेरू है, और सुमेरू होगा आदि भिन्न भिन्न काल के शब्द होने से भिन्न-भिन्न अर्थो का प्रपादन करते हैं ऐसा मानना ठीक नहीं है।
इस प्रकार शब्द नय को मुख्यत. चार लक्षण ग्रहण किये जा सकते हैं। १. न्युत्पत्ति अर्थ से निरपेक्ष केवल शब्द पर से अर्थ का
ग्रहण करना । २. भिन्न लिंग सख्या आदि वाचक शब्दों के अर्थ मे भेद
देखना। ३. लिग सख्या आदि के व्याभिचार दोष को दूर करना ।
समान स्वभावी अनेक पर्यायवाची शब्दों की एकार्थता
को स्वीकार करना । अब इन्ही लक्षणों की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण देता हूँ ।
१ लक्षण नं० १ (निरुक्ति-शब्द पर से अर्थ का ग्रहण)
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१. रा. वा०।१।३३।६८ 'शपत्यर्यमाशयति प्रत्ययतीति शब्दः ।
उच्चरितः शब्द कृत्संगीतेः पुरुषस्य स्वभिधेये प्रत्ययमादधाति इति शब्द इत्युच्यते ।"
अर्थ:-जो शपति अर्थात अर्थ को बुलाता है या उसका ज्ञान
कराता है वह शब्द नय है । जिस व्यक्ति ने संकेत ग्रहण
किया है उसे अर्थबोध करने वाला शब्द नय होता है। (घ ।६ १७६ ॥५)