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१४ अज सत्र नय १४ ऋजु सूत्र नय.
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४. ऋजु सूत्र नय के
भेद प्रभेद व लक्षण ४. ध । २४४।१४ "तत्थ सुद्धो विसईकयअत्थपज्जाओ पडि• खण विवट्टमाणासेसत्थो अप्पणो विसयादो ओसारिदसा- . .' रिच्छ-तब्भावलक्खणसमण्णों।"
अर्थ-अर्थ पर्याय को विषयः करने चाला शुद्ध ऋजुसूत्र नयं ___.. प्रत्येक क्षण मे परियामन करनेकाले समस्त पपार्थों को . विषय करता हुआ, अपने विषय से सादृश्य सामान्य और
तद्भावरूप सामान्य को दूर करने वाला है । " सूक्ष्म पर्याय प्रमाण सत्ता को ग्रहण करने के कारण, इस नय का. . सूक्ष्म ऋजुसूत्र नाम-सार्थक है। क्योंकि सूक्ष्म अर्थ पर्याय के एकत्व . मे अन्य कोई भी पर्याय का किसी प्रकार भी सम्मेल सम्भव नही इसलिये इसे ही शुद्ध ऋजुसूत्र या परम पर्यायाथिक नय भी कहते. है । यह इस नय का कारण है। . .. ..
वर्तमान में जो मनुष्यादि पर्याय स्थूल दृष्टि से बदलती हुई दिखाई देती है वह वस्तुभूत नही है, क्योंकि स्वतत्र रूप से वह कोई पृथक एक पर्याय नही है, बल्कि अनेकों सूक्ष्म अर्थ पर्यायो का एक पिण्ड है । वस्तुभूत तो वह सूक्ष्म अर्थ पर्याय है जो दृष्टि मे नही आती, परन्तु इस स्थूअ पर्याय की कारण है । यह बताना इस नय का प्रयोजन है। .
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२ स्थूल या अशुद्ध ऋजुसूत्र नय -
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जैसा कि पहिले बताया जा चुका है, विशेष दो प्रकार के होते . है-सूक्ष्म व स्थूल । कोई एकक्षण स्थायी निरवयव एक प्रदेशी. स्वलक्षणभूत एक स्वभाव स्वरूप परमाणु या जीव तो सूक्ष्म सत् है, क्योकि इसमे अन्य विशेष किसी प्रकार भी देखे नहीं जा सकते। . अपनी उत्पत्ति से विनाश पर्यन्त दिन मास वर्षादि काल प्रमाण स्थायी, कुछ लम्बाई चौड़ाई मोटाई रूप एक अखण्ड संस्थान वाला,
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