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१४. ऋजु सूत्र नय
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४. ऋजु सूत्र नय के
भेद प्रभेद व लक्षण सुविधा के लिये केवल काल गत विशेष के आधार पर ही लक्षण करने में आता है, अर्थात एक समय स्थायी अर्थ पर्याय प्रमाण ही द्रव्य की सत्ता है, ऐसा इसका लक्षण करने मे आता है । तहा इसके अतिरिक्त शेष तीन विशेपो को भी यथा योग्य रूप में स्वतः लागू करके ऋजुसूत्र सामान्य के लक्षण की भाति इसका विस्तार कर लेना। यहा द्रव्य की सम्पूर्ण सत्ता इतनी ही है।
अब इसी लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ निम्न उद्धरण देखिये।
१. वृ च. व. २११ “य एक समयवतिनं ग्रहणाति द्रव्ये ध्रुवत्व
पर्यायम् । स ऋजुसूत्र. सूक्ष्म सर्वः शब्दो यथा
क्षणिक. २११ ।" अर्थः-जो द्रव्य मे एक समयवर्ती ध्रुवत्वपर्याय को अर्थात द्रव्य
की केवल एक समय प्रमाण स्थिति को ग्रहण करता है वह सूक्ष्म ऋजुसूत्र है, जैसे सर्व ही शब्द क्षणिक है ऐसा
कहना । २. नय चक्र गद्य ।पृ १७ “एकस्मिन्समये वस्तुपर्याय यस्तु पश्यति ।
ऋजुसूत्रे भवेत्सूक्ष्मः स्थूलो स्थूलार्थगोचर.।" अर्थ-एक समय मे ही जो वस्तु की पर्याय को देखता है,
अर्थात एक समय स्थिति प्रमाण ही वस्तु को समझता है
वह सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय है। ३. प्रा. प. पृ. ७६ "सूक्ष्मऋजुसूत्रो, यथा-एकसमयावस्थायी
पर्याय.।"
अर्थ-सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय को ऐसा जानो जैसे एक समयवर्ती सूक्ष्म
पर्यायो ।